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टमाटर संकट का समाधान निकालना जरूरी

  • चन्द्रभूषण वर्मा
    सब्जियों का जायका बिना टमाटर के सूना ही रहता है। सब्जियों चाह कितनी भी अच्छी क्यों न बनी हो, पर उसमें टमाटर का ना हो तो स्वाद आना मुश्किल है। अभी देखा जा रहा है कि टमाटर की कीमतें लगातार बढ़ती जा रही हैं। 20 रुपए से शुरूआत हुई टमाटर की कीमतें सीधे 60, 80, 100, 120, 150 और अब कहीं-कहीं या 200 रुपए प्रति किलो के पार जा चुकी है। वैसे बारिश के मौसम में टमाटर और दूसरी सब्जियों की कीमतों में बढ़ोतरी तो होती ही है, क्योंकि इस मौसम फसलें पानी में डूब कर खराब हो जाती हैं और दूसरे राज्यों से जहां इनका उत्पादन होता है, वहां परिवहन आदि का खर्च ज्यादा लगता, इसलिए भी कीमतों में इजाफा होता है। पर 20 रुपए का टमाटर 200 से 250 रुपए प्रति किलो हो जाए, तो यह आम आदमी के लिए परेशानी खड़ी कर देता है। क्या इस समस्या का कोई समाधान नहीं है? या फिर बारिश से दिसंबर तक महंगे टमाटर आते रहेंगे। इन पर विचार करना जरूरी है।
    इससे पहले इस संकट की वजह को समझने की जरूरत है. रबी के मौसम में नवंबर के महीने में टमाटर की बुवाई होती है और फरवरी तक फसल तैयार हो जाती है। इस वर्ष फरवरी में पैदावार एकदम सामान्य थी. टमाटर की ज्यादातर खेती उत्तर भारत के राज्यों के अलावा महाराष्ट्र, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में होती है. गर्मियों में कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्यों में टमाटर की खेती होती है।
    टमाटर किसान अपनी पैदावार आढ़ती के पास रख आते हैं और अगले दिन वह उन्हें बताता है कि उनका टमाटर इतने में बिका. लेकिन, जब रबी की फसल आयी तो उसकी कीमत बहुत कम मिल रही थी. जून के महीने तक किसानों को टमाटर की प्रति किलोग्राम चार या पांच रुपये की कीमत मिल रही थी। जबकि, उस समय बाजार में इसकी कीमत 35-40 रुपये किलो थी. इसकी वजह से बहुत सारे किसानों ने अपनी 15-20 फीसदी फसलें खेतों में ही छोड़ दीं. टमाटर की खेती में हाथ से काम ज्यादा होता है क्योंकि इसमें टमाटर तोडऩे पड़ते हैं। इसलिए किसानों को लगा कि उन्हें फायदा नहीं हो रहा, और फसल खेतों में बर्बाद हो गयी. इससे रबी मौसम की फसलों की आपूर्ति कम हो गयी. दूसरी ओर, बारिश और भूस्खलन आदि की वजह से दक्षिण भारत से जो सप्लाई आती थी, उसमें भी बाधा आने लगी. आपूर्ति घटने की एक और वजह यह रही कि कर्नाटक के जिन इलाकों में टमाटर की खेती होती है, वहां बारिश नहीं हुई, जिससे उस इलाके की फसल प्रभावित हो गयी. तो, इन दो मुख्य कारणों से टमाटर की आपूर्ति कम हो गयी.
    इसके पीछे वजह यह भी है कि टमाटर एक ऐसी फसल है जो जल्दी नष्ट हो जाती है. किसानों के पास ऐसी कोई सुविधा नहीं है जिससे वह फसल का भंडारण कर सकें और बाद में जरूरत के हिसाब से उसे बेच सकें. इसके साथ ही, टमाटर की कोई न्यूनतम कीमत तय नहीं होती. सरकार भी इस पर कोई न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित नहीं करती. ऐसे में टमाटर या सब्जियों जैसी फसलों की कीमतों के निर्धारण की कोई व्यवस्था अभी तक नहीं है, इसलिए उसमें उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। दूसरी ओर टमाटर की खेती में लागत बहुत ज्यादा है।
    इसलिए जिन फसलों की उम्र कम होती है, उसके लिए भंडारण की व्यवस्था की जानी चाहिए। ताकि किसानों को उनकी फसलों का वाजिब मूल्य मिल सके और आम जनता भी महंगाई के बोझ से ना दबे। पिछले दिनों रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट आयी थी, जिसमें बताया गया था कि आलू, प्याज और टमाटर की कीमतों में आपसी संबंध होता है. इस रिपोर्ट में पिछले आंकड़ों के अध्ययन के आधार पर बताया गया था कि यदि इन तीनों सब्जियों में से किसी एक की कीमत बढ़ती है, तो बाकियों के भी दाम बढऩे लगते हैं. एक और खास बात यह है कि जल्दी खराब होने वाली सब्जियों की कीमतों का संकट तो पैदा होता रहता है।

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