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थाली में स्वाद के साथ सेहत का भरपूर जुगाड़, मडुआ रोटी, पीठा, चाकोड़ साग से हड़िया तक

भोजन किसी भी क्षेत्र की पहचान और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. हम जो खाते हैं उससे जाने भी जाते हैं. झारखंड के पारंपरिक व्यंजनों की बात करें तो ये भी अपने आप में अनुठे हैं. झारखंड के आदिवासियों की भोजन प्रणाली में स्थानीय संस्कृति और परंपराओं की गहराई की झलक भी मिलती है. झारखंड के पारंपरिक भोजन अत्यंत समृद्ध है जिसमें कैल्शियम, लौह, खनिज और विटामिन की अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए यहां के लोग जंगली या उगाई गई कई किस्मों की सब्जियां और कंद जैसी चीजों को भी एड करते हैं. स्टडी में यह बात भी सामने आई है कि आदिवासी भोजन रोग और शारीरिक विकृति से रक्षा करता है और हाई लेवल इम्यूनिटी प्रदान करने में सक्षम हैं. झारखंड के आदिवासी भोजन में कई विशिष्टताएं हैं. यहां का भोजन शारीरिक आवश्यकताओं और भौगोलिक परिस्थितियों से प्रभावित है. झारखंड में पारंपरिक भोजन की बात करें तो उबले हुए भोजन जैसे चावल, दालें, जड़ी-बूटियां या ‘साग’ और मांस यहां खूब खाये जाते हैं. कई अवसरों पर पशु या पक्षी के मांस को आग में भून कर खाया जाता है. स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों पर आधारित इन भोजन की आदतों के कारण, ही आदिवासियों में गंभीर बीमारियों के मामले काफी कम हैं.

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