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क्या हैं पवित्र नदियों में स्नान करने के नियम?

प्राय: लोग विभिन्न पर्वो, अमावस्या, ग्रहणकाल या अन्य तिथि-योग संयोगों में गंगा, नर्मदा, गोदावरी आदि पवित्र नदियों में स्नान करने जाते हैं। वे विशेष संयोगों में पुण्यलाभ अर्जित करने के उद्देश्य से जाते हैं किंतु नदियों में स्नान करने, डुबकी लगाने के सही नियम नहीं जानने के कारण उन्हें पूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाता है। इसी प्रकार देवी-देवताओं को स्नान कराने के भी कुछ नियम बनाए गए हैं, उनका अनुसरण करना आवश्यक होता है।

यदि आप अपने घर में भगवान को स्नान करवा रहे हैं तो उनके जल में कुछ विशेष वस्तुएं डालकर स्नान करवाया जाता है। खाली जल से स्नान नहीं करवाया जाता है। दमनक या दौना पत्र, बेलपत्र, कनेर एवं कमल पुष्प स्नान के जल में डाल लेना चाहिए। यदि ये वस्तुएं उपलब्ध न हों तो स्नान पात्र में अक्षत, गंध और पुष्प डालकर वैदिक मंत्रों से स्नान करवाएं। इसके अतिरिक्त मंगलवार, तिथिक्षय, द्वादशी तिथि तथा ग्रहणकाल में देवता को तैल स्नान कराना वर्जित है।

इसका अर्थ है नाभि तक जल में खड़े होकर गंगादि नदियों, तीर्थो तथा विष्णु-शिवादि देवताओं का स्मरण करते हुए स्नान करना चाहिए। किसी भी पवित्र नदी में यदि स्नान कर रहे हैं तो नदी में सुरक्षित जगह जल में खड़े होकर नाभि तक शरीर का भाग जल में डूबा रहे। इसके साथ ही अपने इष्ट देव, गुरु, विष्णु, शिव और पवित्र नदियों का स्मरण करते रहें। इसी प्रकार स्नान करते हुए कम से कम एक बाद अपनी नाक के दोनों पुटों को तर्जनी अंगुली और अंगूठे की सहायता से कुछ क्षण के लिए बंद करके सिर को जल में डुबोएं। उसके बाद अंजुलि में जल भरकर सूर्यदेव को अ‌र्घ्य दें। स्नान के पश्चात गीले कपड़े उसी नदी में न निचोड़ें। नदी में मल-मूल विसर्जन न करें, थूकना, कान, नाक, मुंह से कोई मैल नदी में उत्सर्जित न करें।

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