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पैरा बेल तैयार करने में कांकेर जिला राज्य में प्रथम

उत्तर बस्तर कांकेर

बेलर मशीन से 200 टन पैरा बेल तैयार
 गौठानों को दिया गया पैरा बेल

उत्तर बस्तर कांकेर.

कलेक्टर डॉ. प्रियंका शुक्ला के मार्गदर्शन में कृषि अभियांत्रिकी जिला कांकेर द्वारा अपने कार्यालय के बेलर मशीन से विकासखण्ड कांकेर के ग्राम-आतुरगांव, सिंगारभाट, माटवाड़ालाल, गढ़पिछवाड़ी, नादनंमारा, बेवर्ती, पोटगांव, पुसवाड़ा, ब्यासकोंगेरा, पुसावण्ड, कोदागांव, देवकोंगेरा एवं माकड़ी तथा नरहरपुर विकासखण्ड के ग्राम-बागोडार, कुरना, सरोना, सारवण्डी, मालगांव, बागोड़ एवं बाबु साल्हेटोला तथा कोयलीबेड़ा विकासखण्ड के ग्राम-डोण्डे, पी. व्ही. 112, पी.व्ही. 87 एवं साबेर के कृशकों के खेतों में हार्वेस्टर मशीन से धान कटाई उपरांत पराली को पैरा बेल बनाकर नजदीक के गौठानों-श्रीगुहान, कुरना, माटवाड़ा लाल, डोण्डे, गढ़पिछवाड़ी, साबेर, बेवर्ती, पोटगांव, पुसवाड़ा, ब्यासकोंगेरा, कोदागांव, सरोना, सारवण्डी, देवकोंगेरा, माकड़ी खुना़, मालगांव एवं बागोड़ में पशुओं के चारा हेतु गौठान समिति द्वारा भण्डारण किया गया हैं।
बेलर मशीन से पैरा बंडल हेतु ग्राम नादनंमारा के कृषक भुवनराम साहू, ग्राम-माटवाड़ा लाल के कृषक पुरनराम सोनकर, ग्राम-कुरना के कृषक उमेश निषाद, ग्राम-डोण्डे के कृषक श्रीमती शांतिदेवी नेताम, ग्राम-पी.व्ही-112 (पखांजुर) के कृषक शंकर महाजन, ग्राम-साबेर के कृषक निर्मल देवनाथ एवं सुबल सरकार, ग्राम-कोदागांव के कृषक राम गुलाल साहू एवं राजकुमार साहू, ग्राम-गढ़पिछवाड़ी के कृषक कोमल राम नाग, देवजी सलाम, चमरूराम सलाम तथा अन्य 70 कृषकों द्वारा पैरादान किया गया। कलेक्टर डॉ. प्रियंका शुक्ला द्वारा खेत में पड़े पराली को न जलाकर गौठानों में दान करने हेतु कृषकों से अपील किया गया है। उन्होंने कहा कि  बेलर मशीन का अधिक से अधिक उपयोग कर खेत में पड़े पराली को पैरा बेल बनाकर गौठान को दान किया जाय।
सहायक कृषि अभियंता एच.एल. देवांगन ने बताया कि जिले में 24 ग्रामों के 82 कृषकों के खेत में बेलर मशीन से 8025 पैरा बेल तैयार किया जाकर लगभग 200 टन पैरा बेल गौठान समिति के माध्यम से जिले के 17 गौठानों में पशुओं के चारा हेतु उपलब्ध कराया गया है। पैरा बेल तैयार करने में कांकेर जिला राज्य में प्रथम स्थान पर है। उन्होंने कहा कि पहले जिले के किसान रबी फसल की तैयारी के लिए खेत में पड़े हुए धान के पराली को जलाते थे, जिससे पर्यावरण प्रदुषण होता था एवं मिट्टी की उर्वरकता शक्ति भी कमजोर हो जाती थी। वर्तमान में बेलर मशीन के उपयोग होने से जिले के किसान स्वयं आगे आकर गौठानों के लिए पैरादान कर रहे है।

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