सनातन धर्म में मृत्यु के बाद 16 वां संस्कार किया जाता है। इसे आप अंतिम संस्कार के नाम से जानते हैं। लेकिन इन सभी के बीच एक सवाल खड़ा होता है कि दाह संस्कार के बाद आत्मा कहां जाती है। गरुड़ पुराण के अनुसार, मृत्यु के बाद व्यक्ति की आत्मा अपनी अंतिम यात्रा पर निकलती है, जिसमें उसे कई पड़ाव पार करने पड़ते हैं। आज हम इस खबर में पढ़ेंगे कि मृत्यु के बाद आत्मा कहां जाती है और उसका क्या पुनर्जन्म होता है या नहीं
आत्मा का सफर
गरुड़ पुराण के अनुसार आत्मा अमर है। मृत्यु के बाद आत्मा को एक लंबा सफर तय करना होता है। आत्मा का सबसे पहले यमलोक लिया जाता है। यहां मृत्यु के देवता यमराज के सामने पेशी होती है। ऐसा कहा जाता है यमराज तक पहुंचने के लिए आत्मा को लगभग 86 हजार योजन की दूरी तय करनी पड़ती है। पुराण के अनुसार यदि किसी जीव ने अपने जीवित रहते समय किसी भी प्राणी को मानसिक या शारीरिक कष्ट नहीं दिया है तो वह आसानी से यमलोक पहुंच जाता है। वहीं, जो मनुष्य अपने जीवन में दूसरे मनुष्य को कष्ट देते हैं उन्हें यम के दूत कई तरह से प्रताड़ित करते हुए यमलोक तक लाते हैं। इस दौरान उन्हें 86 हजार योजन की दूरी तक तरह-तरह से प्रताडि़त किया जाता है।
आत्मा को मिलता है पिंडदान का हिस्सा
सनातन धर्म में पिंडदान का महत्व भी बताया गया है। यह मृत व्यक्ति के परिजनों द्वारा कराया जाता है। पिंडदान का आधा हिस्सा मृत व्यक्ति की आत्मा को प्राप्त होता है। कहा जाता है कि यदि आत्मा दुष्ट प्रवृत्ति की है तो यमदूत आत्मा को पिंड नहीं देते हैं। ऐसी स्थिति में आत्मा को भूखा रहकर एक लंबा समय तय करते हुए यमलोक तक जाना पड़ता है।
आत्मा को ऐसे मिलता है पुनर्जन्म
गरुड़ पुराण के अनुसार मृत्यु के बाद उसके कर्मों का हिसाब लगाया जाता है। यदि कर्म अच्छे होते हैं तो वह सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है। वहीं, पापी मनुष्य को नरक में भेजा जाता है। नरक में यातनाएं झेलने के बाद आत्मा का पुनर्जन्म मिलता है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार, पुनर्जन्म मृत्यु के तीसरे दिन से लेकर 40 दिन में होता है।
नोट: यह सूचना इंटरनेट पर उपलब्ध मान्यताओं और सूचनाओं पर आधारित है। छत्तीसगढ़ राज्य न्यूज पोर्टल लेख से संबंधित किसी भी इनपुट या जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी और धारणा को अमल में लाने या लागू करने से पहले कृपया संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।