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सैकड़ों साल से बस्तर में खड़े है हिंदू सनातन धर्म के आराध्य श्रीराम…

प्रकृति के खजानों से परिपूर्ण बस्तर में लगभग पांच सौ साल पुराने सागौन के पेड़ हैं जिन्हें हिंदू सनातन धर्म के आराध्य भगवान राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघन का नाम दिया गया है। जो वनवासियों की आस्था को प्रदर्शित करता है।

बस्तर का पुराना नाम दंडकारण्य है और इस क्षेत्र का रामकथा में विस्तृत वर्णन है। बस्तर वनमंडल के माचकोट वन परिक्षेत्र अंतर्गत जगदलपुर से 40 किलोमीटर दूर तोलावाड़ा बीट में पांच सौ पचास साल पुराना देश का जीवित एक मात्र सागौन का वृक्ष है जिसे राम कहा जाता है।

राम बस्तर में पेड़ों को देव तुल्य मानने का प्रत्यक्ष उदाहरण है। वन विभाग द्वारा संरक्षित इस पुरातन वृक्ष को देखने दूर-दूर से सैलानी यहां पहुंचते हैं। यह इलाका साल और सागौन वृक्षों से परिपूर्ण है। यहां चार से पांच सौ साल पुराने सागौन के चार वृक्ष कतारबद्ध खड़े हैं। इन्हें राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न नाम दिया गया है। रामनामी सागौन वृक्ष की मोटाई 588 सेंटीमीटर तथा ऊंचाई 43.05 मीटर है।

सागौन के इन वृक्षों के अब तक बचे रहने को लेकर यहां जंगल में बसाहट क्षेत्र के निवासियों की अलग-अलग मान्यता है। दावा किया जाता है कि एक बार कुछ ग्रामीण सबसे मोटे सागौन वृक्ष को काटने पहुंचे थे लेकिन सफल नहीं हुए। जिसके बाद इन वृक्षों को काटने की कोशिश किसी ने नहीं की।

ये पुराने सागौन के वृक्ष धरोहर के रूप में संरक्षित हैं। माचकोट वन परिक्षेत्र के रेंजर बलदाऊ प्रसाद मानिकपुरी बताते हैं कि पांच सौ साल से अधिक पुराना राम का यह सागौन वृक्ष भारत का सबसे पुराना जीवित सागौन है।

इसलिए छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल ने भी इन वृक्षों को अपने प्रचार सामग्री में शामिल किया है। इसके चलते बड़ी संख्या में लोग विलक्षण वृक्षों को देखने तोलावाड़ा जंगल पहुंचते हैं।

गौरी मंदिर के पुजारी और ग्राम तिरिया के पटेल चैतुराम बताते हैं कि जो लोग भगवान गुप्तेश्वर का दर्शन करने जाते हैं, वे वापसी में रामनामी सागौन का दर्शन कर स्वयं को धन्य मानते हैं।

माना जाता है कि भगवान राम ने वनवास के दौरान अपना चातुर्मास गुप्तेश्वर की गुफा में व्यतीत करते शिव आराधना की थी। इस भावना को ध्यान में रखकर ही पुराने सागौन वृक्षों का नामकरण राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न किया गया है।

उल्लेखनीय है कि भरत नाम का सागौन का वृक्ष सूख चुका है। शेष तीन वृक्षों को दीर्घजीवी बनाने वन विभाग प्रयासरत है। वन अनुसंधान केन्द्र जबलपुर के विशेषज्ञ इन वृक्षों का परीक्षण कर चुके हैं। परीक्षण में रामनामी वृक्ष की कालाविध पांच सौ साल से अधिक बताई गई है।

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