Home » साय की कांग्रेस में एंट्री के राजनैतिक मायने
Breaking एक्सक्लूसीव छत्तीसगढ़ राज्यों से

साय की कांग्रेस में एंट्री के राजनैतिक मायने


-चंद्रभूषण वर्मा

अप्रैल महीने का अंतिम दिन और मई की शुरूआत छत्तीसगढ़ के राजनीतिक गलियारों में काफी सरगर्म रहा है। क्योंकि 30 अप्रैल को छत्तीसगढ़ में भाजपा की नींव रखने वाले दिग्गज भाजपा नेता नंदकुमार साय ने पार्टी में अपनी हो रही उपेक्षा को वजह बताते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। वहीं इसके अगले दिन ही यानी 1 मई को उन्होंने छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मौजूदगी में कांग्रेस का दामन थाम लिया। इन दो दिनों में नंदकुमार साय के इस्तीफे और कांग्रेस प्रवेश की चर्चा प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे देश में होती रही। राजनैतिक विश्लेषक तो इसे कई मायनों में देखते हैं। एक बात और, साय ऐसे राजनेता हैं, जो हमेशा विवादों से दूर रहे हैं। जैसा कि यह साल छत्तीसगढ़ में चुनाव का साल है। यहां नवंबर-दिसंबर में विधानसभा चुनाव होना है। इससे पहले भाजपा के कद्दावर नेता नंदकुमार साय का कांग्रेस प्रवेश काफी दिलचस्प हो गया है। इसका असर न सिर्फ छत्तीसगढ़ की राजनीति बल्कि मध्यप्रदेश की राजनीति में भी पड़ेगा।
प्रदेश के बड़े आदिवासी नेता नंद कुमार साय ने मध्य प्रदेश से अलग होकर गठित हुए छत्तीसगढ़ में भाजपा की नींव रखी थी। राज्य गठन के बाद उन्हें नेता प्रतिपक्ष बनाया गया था। इस दौरान उन्होंने पार्टी नेताओं के साथ मिलकर जोगी सरकार के खिलाफ बड़ा प्रदर्शन किया था। इस प्रदर्शन में पुलिस ने लाठीचार्ज किया था, जिसमें साय जी का पैर टूट गया था। इसके बाद भाजपा ने इस मुद्दे को भुनाया और जोगी सरकार के अत्याचार को मुद्दा बनाया और फिर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी थी।
भाजपा की ओर से साय बड़े आदिवासी नेता थे. इसी वजह से उन्हें अनुसूचित जनजाति आयोग का अध्यक्ष भी बनाया गया था. जब भी भाजपा ने आदिवासियों को साधने का प्लान बनाया तब-तब साय हमेशा आगे रहे। उनके चेहरे पर ही भाजपा ने आदिवासी वर्ग का भरोसा जीता।
यदि हम छत्तीसगढ़ विधानसभा की वर्तमान परिदृश्य पर नजर डालें तो हम देखते हैं कि इस समय प्रदेश की 90 विधानसभा सीटों में से 29 सीटें आदिवासियों के लिए रिजर्व हैं। इनमें से 27 सीटों पर कांग्रेस काबिज है, जबकि सिर्फ 2 सीटें ही भाजपा की झोली में है। इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले आदिवासी समुदाय को साधने के लिए भाजपा ने पूरी तैयारियां कर ली थीं। आपको बता दें कि बस्तर में 12 सीटें हैं। यहां का मु्द्दा भाजपा ने बराबर भुनाया, लेकिन अब भाजपा की मेहनत पर पानी फिरता नजर आ रहा है।
राजनैतिक विश्लेषक मानते हैं कि नंद कुमार साय के कांग्रेस प्रवेश का असर सरगुजा की राजनीति पर भी पड़ेगा। वह सरगुजा से साल 2004 में सांसद रहे। इससे पहले साय 1989 और 1996 में रायगढ़ लोकसभा सीट से सांसद चुने गए हैं। वर्तमान में सरगुजा संभाग की 14 विधानसभा सीट में से एक पर भी भाजपा के विधायक नहीं हैं। ऐसे में एक बार भाजपा के लिए यहां की राह काफी कठिन होने वाली है।
क्या सिंहदेव का कद कम करने हुई साय की एंट्री
छत्तीसगढ़ में यह चुनावी साल होने के चलते नंदकुमार साय जैसे दिग्गज भाजपा नेता का कांग्रेस प्रवेश कई मायने रखता है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि साय की कांग्रेस में एंट्री सिंहदेव को कमजोर करने की रणनीति का एक हिस्सा हो सकता है। क्योंकि साय उसी सरगुजा क्षेत्र से आते हैं जो टीएस सिंहदेव का गढ़ है। वैसे भी सीएम भूपेश बघेल और सिंहदेव के बीच की अनबन जगजाहिर है। जैसा कि साय ने खुद कहा है कि बीजेपी के लोग ही उनकी छवि खराब करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन सियासी मामलों को समझना इतना आसान नहीं है। साय का कांग्रेस में शामिल होने के पीछे भी कई दांव-पेच हो सकते हैं।
छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के समकक्ष कांग्रेस में दूसरा बड़ा चेहरा टीएस सिंहदेव हैं। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार को चार साल से ज्यादा हो गया, लेकिन बघेल और सिंहदेव की अनबन में कभी कमी नहीं आई। इन चार वर्षों के दौरान ढाई-ढाई साल का फॉम्र्यूला भी लगातार चर्चाओं में रहा।
कांग्रेस चुनावी तैयारियों में जुटी
साल 2023 के अंत में एक बार फिर से विधानसभा के चुनाव होने हैं। कांग्रेस पार्टी अंदरूनी रूप से तैयारियों में जुट गई है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भेंट मुलाकात कार्यक्रम के जरिये लगभग सभी जिलों का दौरा भी पूरा कर लिया है। इस बीच टीएस सिंहदेव कई बार मुख्यमंत्री बनने की इच्छा भी जाहिर कर चुके हैं। सूत्रों की माने तो सरगुजा क्षेत्र में इस बार कांग्रेस पार्टी कई बड़े उलटफेर कर सकती है। कुछ इसी तरह के उलटफेर का नतीजा भाजपा के सरगुजिया नेता नंदकुमार साय की कांग्रेस में एंट्री है।
यह तय है कि टिकट बंटवारे के दौरान नंदकुमार साय सरगुजा क्षेत्र में अपने समर्थकों के लिए टिकट की मांग करेंगे। इससे टीएस सिंहदेव को नुकसान हो सकता है, क्योंकि अब तक इस इलाके में वे पार्टी के अकेले प्रभावशाली नेता थे। सिंहदेव के समर्थकों की संख्या जितनी कम होगी, सीएम पद के लिए उनकी दावेदारी उतनी कमजोर होगी।
इसके उलट छत्तीसगढ़ के भाजपा के दिग्गज नेता लगातार साय को मनाने की कोशिश करते रहे। लेकिन उन्हें भी खाली हाथ ही लौटना पड़ा। अब तो यह समय ही बताएगा कि 5 बार सांसद और भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व में भी बड़ा कद रखने वाले नंदकुमार साय कांग्रेस के लिए कितना लकी साबित होते हैं।

About the author

NEWSDESK

Cricket Score

Advertisement

Live COVID-19 statistics for
India
Confirmed
0
Recovered
0
Deaths
0
Last updated: 18 minutes ago

Advertisement

error: Content is protected !!