भारतीय घरों में छोटे बच्चों के नन्हे हाथों-पैरों में चांदी के कड़े और पायल पहनाना एक सदियों पुरानी परंपरा है। यह न सिर्फ उनकी सुंदरता में चार चांद लगाता है, बल्कि इसके पीछे कई गहरे वैज्ञानिक, स्वास्थ्य और ज्योतिषीय कारण भी छिपे हैं। आमतौर पर जिसे हम सिर्फ एक रीति-रिवाज समझते हैं, वह असल में बच्चों की सेहत के लिए एक सुरक्षा कवच का काम करता है।
विज्ञान भी यह मानता है कि चांदी एक शक्तिशाली एंटी-बैक्टीरियल धातु है। जब बच्चे चांदी के गहने पहनते हैं, तो यह धातु लगातार उनकी त्वचा के संपर्क में रहती है, जिससे कई तरह के कीटाणुओं और संक्रमणों से उनका बचाव होता है। यह बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) को मजबूत करने में मदद करती है, जो नवजात शिशुओं के लिए विशेष रूप से लाभकारी है क्योंकि उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली उस समय विकास की अवस्था में होती है।
मन को शांत और दिमाग को तेज करे
चांदी को मन का कारक माना गया है। यह धातु मानसिक स्थिरता लाने और दिमाग को तेज करने में सहायक होती है। जब बच्चे चांदी के कड़े या पायल पहनते हैं, तो इससे निकलने वाली सकारात्मक ऊर्जा उनके मन को शांत और एकाग्र रखने में मदद करती है। माना जाता है कि इससे बच्चे भावनात्मक रूप से स्थिर रहते हैं और बढ़ती उम्र के साथ चीजों को तेजी से सीखते हैं।
शरीर की ऊर्जा को रखे संतुलित
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, चांदी का संबंध चंद्रमा से है, जो मन और भावनाओं को नियंत्रित करता है। यह धातु शरीर में ऊर्जा के प्रवाह को संतुलित करने का काम करती है। कहा जाता है कि शरीर से सबसे ज्यादा ऊर्जा हाथ और पैरों के माध्यम से बाहर निकलती है। ऐसे में जब बच्चों को चांदी के गहने पहनाए जाते हैं, तो यह ऊर्जा को शरीर से बाहर जाने से रोककर वापस शरीर में लौटा देती है, जिससे बच्चा दिनभर ऊर्जावान महसूस करता है।
शरीर को दे ठंडक
चांदी की तासीर ठंडी होती है। इसमें प्राकृतिक रूप से शरीर को ठंडक पहुंचाने का गुण होता है। छोटे बच्चों की त्वचा बेहद नाजुक होती है और वे अक्सर गर्मी सहन नहीं कर पाते। चांदी पहनने से उनके शरीर का तापमान नियंत्रित रहता है, खासकर गर्मियों के मौसम में यह उन्हें हीट रैश और गर्मी से होने वाली अन्य समस्याओं से बचाने में मदद करती है।













