Home » लॉकडाउन की मार : जो हाथ कभी तराशते थे सोने…वो हाथ गड्ढे खोदने को हो गए मजबूर…जानियें क्या है मामला…
देश राज्यों से

लॉकडाउन की मार : जो हाथ कभी तराशते थे सोने…वो हाथ गड्ढे खोदने को हो गए मजबूर…जानियें क्या है मामला…

पंजाब में सोने पर जटिल नक्काशी का काम करने वाले शेख औलाद अली को कोरोना संकट के चलते लगे लॉकडाउन में काम बंद हो जाने के कारण पश्चिम बंगाल के बर्दवान जिले में अपने गांव सोजीपुर लौटना पड़ा। किसी तरह गांव लौटने पर 14 दिन क्वारंटीन में रहने के बाद औलाद अली को अपने परिवार का पेट पालने की चिंता सताने लगी। कोई काम नहीं मिलने पर उन्होंने मनरेगा में पंजीकरण करा लिया और अब सोने के कुशल कारगीर औलाद अली गांव में मनरेगा के तहत गड्ढे खोदने और नाली बनाने का काम कर रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, औलाद अली ने बताया कि वह सोने पर जटिल कारीगरी करते हैं और बीते 18 सालों से यह काम कर रहे हैं। औलाद अली के अनुसार बीते 6 सालों से वह पंजाब में ही का कर रहे हैं। हालात से उदास औलाद अली कहते हैं कि आज मुझे अपने गांव में गड्ढे खोदने पड़ रहे हैं। मेरे हाथों को इस काम की आदत नहीं है, लेकिन मेरे पास कोई और विकल्प भी नहीं है, इसलिए मजबूरी में ये काम करना पड़ा रहा है। लॉकडाउन की यह मार अकेले औलाद अली पर नहीं पड़ी है। लॉकडाउन के चलते काम बंद होने की वजह से औलाद अली के साथ ही सोने पर जटिल डिजाइन बनाने का काम करने वाले गांव के 22 अन्य युवक भी अपने घर लौट आए हैं। लेकिन इन सबकी किस्मत औलाद अली जैसी नहीं है, क्योंकि इन सबको मनरेगा में भी काम नहीं मिल सका है। अब ये सब काम की तलाश में इधर-उधर भटक रहे हैं। कुछ लोगों ने तो अपने गांव और इलाके के बाहर भी नौकरियां तलाशनी शुरू कर दी हैं, ताकि वह किसी तरह अपने परिवार का पेट पाल सकें। इन सभी लोगों को सब कुछ सामान्य होने का बेसब्री से इंतजार है ताकि उनके मालिक उन्हें बुलाएं तो वह फिर से अपने काम पर लौट सकें। हालांकि, उनके मालिकों का कहना है कि अभी सोने का बाजार दिवाली से पहले शुरू नहीं होगा। ऐसे में इन कामगारों का कहना है कि बेहतर है कि तब तक बंगाल में ही कुछ काम किया जाए। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, बंगाल में करीब 10.5 लाख प्रवासी कामगार वापस लौटे हैं, जिनमें से 4 लाख से ज्यादा ने मनरेगा में अपना रजिस्ट्रेशन कराया है। (एजेंसी)

Advertisement

Advertisement