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छत्तीसगढ़ राज्यों से

संगठन योद्धा, लोकतंत्र सेनानी व ध्येय निष्ठा के जीवंत उदाहरण थे जगदेव रामजी : रमन सिंह

रायपुर। अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगदेव रामजी उराँव का गत 15 जुलाई को जशपुर आश्रम में निधन हो गया था। वनवासी विकास समिति छत्तीसगढ़ प्रांत की ओर से रोहिणीपुरम, रायपुर स्थित प्रांत कार्यालय में महानगर वासियों और कार्यकर्ताओं की ओर से श्रद्धा-सुमन अर्पित करने हेतु दिनांक 21 जुलाई को प्रात: 8 से 9.30 बजे तक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का प्रारंभ शबरी कन्या आश्रम की छात्रा हेमोलिका की व्यक्तिगत गीत-जलते जीवन के प्रकाश में… से हुआ। संस्मरण प्रस्तुत करते हुए सर्वप्रथ आश्रम के अ. भा. प्रशिक्षण प्रमुख व छात्रावास टोली के मार्गदर्शक निशिकान्त जोशी ने जगदेवरामजी का जीवन परिचय दिया। उन्होने बताया कि जगदेव रामजी का जन्म जशपुर (जहाँ वनवासी कल्याण आश्रम का मुख्यालय स्थित है) से 3 किलोमीटर दूर कोमाड़ो नामक गाँव में हुआ था। वह 12 वर्ष की आयु में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आये। 1967 में हायर सेकंड्री की परीक्षा पास करने के पश्चात वह कल्याण आश्रम के स्कूल में 1968 से शिक्षण कार्य करने लगे। 1971 में कल्याण आश्रम विवेकानंद उच्चतर विद्यालय में वह शारीरिक शिक्षक नियुक्त हुए। जगदेव जी ने अध्यापन के साथ साथ अध्ययन भी जारी रखा। उन्होंने दूरस्थ माध्यम से 1972 में स्नातक और 1975 में परास्नातक की शिक्षा ग्रहण की। वनवासी कल्याण आश्रम के चर्चित व्यक्ति होने के कारण आपातकाल के काले समय में उनको गिरफ्तार कर 6 महीने तक मीसा के तहत जेल में बंद कर दिया गया था। 1978 में जब वनवासी कल्याण आश्रम को अखिल भारतीय स्वरुप दिया गया तब वह अस्सी के दशक में कर्मयोगी बालासाहब देशपांडे जी के साथ रहे। इस कारण उन्होंने पूरे भारत का भ्रमण किया । 1985 में उनको वनवासी कल्याण आश्रम का उपाध्यक्ष बनाया गया। 1993 तक उन्होंने इस दायित्व को निभाया। 1993 में वनवासी कल्याण आश्रम के अध्यक्ष बालासाहब देशपांडे के खराब स्वास्थ्य के कारण जगदेव ने अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के 2 वर्ष तक कार्यकारी अध्यक्ष रहे। 1995 से माननीय जगदेव जी वनवासी कल्याण आश्रम के राष्ट्रीय अध्यक्ष के दायित्व का निर्वहन कर रहे थे।
आज अखिल भारतीय स्तर पर वनवासी कल्याण आश्रम का बृहद स्वरुप देखने को मिलता है। वनवासी कल्याण आश्रम को इस स्वरूप तक ले जाने में जगदेव का बहुत बड़ा योगदान रहा है ।25 वर्षों तक अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने जनजाति समाज के सर्वांगीण विकास के लिए दृष्टिपत्र तैयार करवाकर निरंतर प्रवास कर जनजागरण करते हुए इस चिंतन को गांव-गांव तक पहुंचाने का कार्य किया। राष्ट्रीय अध्यक्ष जैसे उच्च दायित्व पर रहते हुए भी उनकी सरलता व सादगी प्रभावित करती थी। कई बार वे रायपुर आने पर रेल्वे स्टेशन से अकेले ही सामान लेकर कार्यालय आ जाते थे। बिना आरक्षण के रेल के जनरल बोगी में ही दूर के प्रवास पर निकल जाते थे। स्वयं के लिए वे कोई विशेष सुविधा की अपेक्षा नहीं करते थे। वे केवल कार्यकर्ताओं की चिंता करते थ। 2002 में एक बार औरंगाबाद चिकित्सा के लिए गए तो भीड़ होने के अनेक आग्रह के बाद भी अस्पताल की व्यवस्था के अनुसार साधारण रोगियों की तरह प्रतीक्षा करना पसंद किये। एक कार्यकर्ता ने उनसे आम खाने का अनुरोध किया तो प्रेमपूर्वक मना करते हुए कहा कि वे आषाढ़ के महीने में ही आम खाते हैं क्योंकि इस समय आम की गुठली पक जाती है और उसे जमीन पर गाडऩे से नया पौधा निकल आता है। इससे पहले आम खाने पर भारूण हत्या का पाप लगता है। बालासाहेब जी के सहयोगी रहते हुए उन्होंने उनकी हर छोटी-बड़ी आवश्यकताओं का ध्यान रखा। पूर्व मुख्यमंत्री व भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि हमने एक एक मौन साथक तपस्वी को खो दिया। सहज सरल एवं मिलन सार व्यक्तित्व के धनी थे हमने जनजाति क्षेत्र में एक ऐसा नेतृत्व खो दिया जिसने अपना पूरा जीवन जनजाति समाज के विकास में खपा दिया। छ.ग. में जनजाति समाज को जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई उनके जीवन के लिए कविता की एक पंक्ति कहते हुए मैं अपनी बात को विराम दूंगा-
मन समर्पित तन समर्पित और यह जीवन समर्पित
चाहता हूँ मातृ.भू तुझको अभी कुछ और भी दूँ ॥
इस भावना को लेकर उन्होंने अपना जीवन समर्पित किया मैं अपनी ओर से स्व. जगदेव राम उरांव जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं हमारी आने वाली पीढ़ी उनके पदचिन्हों पर चलेगी ऐसा विश्वास करता हूं। ओम शांति सादगी, सरलता, विनम्रता के धनी जगदेवरामजी से उनका कई बार मिलना हुआ था । वे किसी भी समस्या के प्रति स्पष्ट विचार रखते थे । वे जशपुर के छोटे से गांव से निकलकर अपनी मेहनत के बल पर कल्याण आश्रम के राष्ट्रीय अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण दायित्व पर पहुंचे । वे संगठन योद्धा थे । गर्मजोशी के साथ काम करते हुए आपातकाल के समय लोकतंत्र सेनानी के रूप में जेल गए । बाहर आकर दोगुने उत्साह के साथ फिर से संगठन का कार्य विस्तार किया । उन्होंने जिस तरह पूरे मनोयोग से अपना कार्यकाल बिताया इससे बड़ा समर्पण का उदाहरण दूसरा कोई नहीं हो सकता ।
तन समर्पित, मन समर्पित और यह जीवन समर्पित, चाहता हूं देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं… गीत को उन्होंने अक्षरश: जीया । समाज के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले ऐसे संगठन योद्धा बिरले ही होते हैं ।

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