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क्या आप डायबिटीज के मरीज है…? यदि हां तो यह खबर आपके लिए है महत्वपूर्ण क्योंकि…

नई दिल्ली। दुनिया इस समय सबसे गंभीर महामारी के दौर से गुजर रही है. भारत में हर दिन हजारों की संख्या में कोविड-19 के नए मामले सामने आ रहे हैं। महाराष्ट्र, दिल्ली, तमिलनाडु, गुजरात समेत कई राज्यों में हालात बहुत बुरे होने के बाद भी संक्रमण पीक पर पहुंचता नहीं दिख रहा है। स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के साथ हर सेक्टर के संगठन वैश्विक महामारी से उबरने में मदद करने के लिए आगे आ रहे हैं। उद्योग संगठन फिक्की की स्वास्थ्य सेवा समिति के पूर्व अध्यक्ष डॉ. नंदकुमार जयराम ने कहा कि कुछ संगठन सीधे कोविड-19 से मुकाबला कर रहे हैं तो कुछ आर्थिक मदद कर रहे हैं। कुछ संगठन कोविड-19 से बचाव की योजना बनाने और उसे लागू करने में शामिल हैं।
डॉ. जयराम ने कहा कि कोरोना संकट के बीच डायबिटीज, हाइपरटेंशन और हार्ट से जुड़ी बीमारियों के मरीजों पर ध्यान देना भी बेहद जरूरी है। उन्होंने बताया कि वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के 155 देशों पर किए गए एक अध्ययन से साफ हो गया है कि ज्यादातर देशों में गैर-कोविड उपचार आंशिक रूप से या पूरी तरह ते ठप हैं। अध्ययन के मुताबिक, 53 फीसदी देशों में हाइपरटेंशन और 49 फीसदी में डायबिटीज का इलाज नहीं हो रहा है। गैर-कोविड बीमारियों का इलाज ठप होने के कई कारण सामने आए हैं। इनमें कोविड-19 के कारण यातायात सुविधा की कमी, लॉकडाउन, संक्रमण का डर, बड़ी संख्या में स्वास्थ्य कर्मियों का कोविड की रोकथाम और इलाज में लगा होना है।
कोरोना मरीजों के साथ हो रहा बाकी रोगियों का इलाज
कोलंबियां एशिया हॉस्पिटल्स के सीईओ और ग्रुप मेडिकल डायरेक्टर डॉ. जयराम ने कहा कि वुहान में कोविड से लडऩे के सबसे पहले एक विशाल कोरोना सेंटर बनाया गया। साथ ही यह सुनिश्चित किया गया कि कोरोना के मरीज और गैर-कोविड मरीजों का इलाज एक ही अस्पताल में ना हो। हालांकि, बिना लक्षण वाले कोरोना पॉजिटिव मामले सामने आने के बाद कोविड-19 के मरीजों की पहचान काफी मुश्किल हो जाती है। भारत के कई अस्पतालों में कोरोना मरीजों और गैर-कोविड मरीजों का एक ही जगह इलाज किया जा रहा है। इससे अस्पताल में भर्ती होने वाले दूसरी बीमारियों के मरीज भी कोरोना की चपेट में आ सकते हैं।
बच्चों के वैक्सीनेशन सुविधा को सुचारू रखना होगा अहम
दूसरी ओर कुछ स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि गैर-कोविड मरीजों का इलाज भी बहुत जरुरी है। दरअसल, भारतीय स्वास्थ्य सेवा पर गैर-संचारी रोगों के मरीजों का भारी बोझ है। बीएमसी नेफ्रोलॉजी के 2013 में प्रकाशित एक आलेख में कहा गया था कि किडनी के अंतिम चरण की बीमारियों के मरीजों की संख्या प्रति 10 लाख जनसंख्या में 229 थी. इसमें हर साल 1,00,000 नए मामले जुडऩे वाले हैं। इसके अलावा डायबिटीज, दिल की बीमारियां, हाइपरटेंशन से जुड़ी स्वास्थ्य सेवाओं का जारी रहना बेहद जरूरी है. इसके अलावा बच्चों के वैक्सीनेशन और टीबी के इलाज की सुविधाओं को भी सुचारू रखना अहम है।
एनसीडी पर काबू नहीं रख पाए तो भी जाएगी लोगों की जान
डॉ. जयराम ने कहा कि हार्ट अटैक, स्ट्रोक, ट्रॉमा, कैंसर का इलाज, अंग प्रत्यारोपण, गर्भावस्था, ज्वाइंट रिप्लेसमेंट जैसी स्वास्थ्य सुविधाओं को जारी रखा जाना चाहिए. स्वास्थ्य सेवा की योजना में इन बीमारियों पर अलग से विचार करना होगा। गैर-कोविड बीमारियों के आपातकालीन मामलों की देखभाल को प्राथमिकता देनी होगी। ज्वाइंट रिप्लेसमेंट जैसी सुविधाओं में देरी से खास नुकसान नहीं होगा। उन्होंने कहा कि कोरोना संकट के बीच अगर हम एनसीडी को काबू में नहीं रख पाए तो इससे भी जानें जाएंगी। फर्क सिर्फ इतना होगा कि यह नजर नहीं आएगा। एक ही अस्पताल में कोविड और गैर-कोविड मरीजों का इलाज किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए खास इंतजाम करने होंगे। (एजेंसी)

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