एक शादीशुदा बेटी एक बेटी की तरह ही रहती है, जिस तरह से एक शादीशुदा बेटा एक बेटा रहता है. कर्नाटक हाई कोर्ट ने सैनिक कल्याण बोर्ड द्वारा जारी एक दिशानिर्देश को खारिज करते हुए फैसला सुनाया, जिसमें पूर्व सैनिकों की शादीशुदा बेटियों को डिपेंडेंट कार्ड से वंचित कर दिया गया था. कोर्ट ने कहा कि जिस तरह एक बेटा शादी से पहले या बाद में बेटा ही रहता है, उसी तरह एक बेटी भी शादी से पहले और बाद में बेटी ही रहती है. अगर शादी के बाद बेटे का स्टेटस नहीं बदलता तो शादी के बाद बेटी का स्टेटस भी नहीं बदलना चाहिए. कर्नाटक हाई कोर्ट के सिंगल जज बेंच ने 2 जनवरी को फैसला सुनाया था. हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह भी कहा कि जेंडर इक्वेशन के आधार पर वह पूर्व रक्षाकर्मियों को एक्स-सर्विसमेन के तौर पर देखना बंद करे और पूर्व रक्षाकर्मियों के लिए जेंडर न्यूट्रल नोमनक्लेचर पर ध्यान दे. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, कर्नाट हाई कोर्ट के जज जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने पूर्व सैन्यकर्मी सुबेदार रमेश खंडप्पा की 31 वर्षीय बेटी की याचिका पर सुनवाई कर रहे थे. 2001 के ऑपरेशन पराक्रम के बाद माइन की सफाई के दौरान हुई दुर्घटना में सुबेदार की मौत हो गई थी. मद्रास इंजीनियर ग्रुप (एमईजी) के पूर्व सूबेदार की बेटी प्रियंका पाटिल, जो 10 साल की थी, जब उसके पिता की मृत्यु हो गई, उसने 2021 में सैनिक कल्याण बोर्ड द्वारा शादीशुदा होने के आधार पर डिपेंडेंट कार्ड जारी करने से इनकार करने पर कर्नाटक हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. प्रियंका पाटिल ने 2020 में राज्य के सरकारी डिग्री कॉलेजों में सहायक प्रोफेसरों की भर्ती के दौरान पूर्व सैनिकों के परिजनों के लिए कर्नाटक सरकार द्वारा किए गए 10 प्रतिशत आरक्षण का लाभ उठाने के लिए पूर्व रक्षा कर्मियों की बेटी के रूप में पहचान की मांग की थी.
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शादीशुदा बेटी, शादीशुदा बेटे के बराबर, हाईकोर्ट की सैनिक वेलफेयर बोर्ड को दो टूक
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