– प्रकृति के प्रति अनुराग की अभिव्यक्ति है सरहुल नृत्य-गीत
– छत्तीसगढ़ युवा महोत्सव में राजनांदगांव के लोक नर्तक देंगे सरहुल की प्रस्तुति
– राजधानी में 28 से 30 जनवरी तक आयोजित होगा छत्तीसगढ़ युवा महोत्सव
आलेख
राजनांदगांव. छत्तीसगढ़ की धरा में अमूल्य आदिवासी संस्कृति अपने बहुरंगी स्वरूपों में प्रगट होती है। मिट्टी से जुड़ी लोक संस्कृति एवं जीवन की सशक्त अभिव्यक्ति लोक नृत्य के माध्यम से होती है। सरहुल नृत्य प्रकृति की अराधना के लिए किया जाता है। प्रकृति है तो, हम है। प्रकृति की पूजा जनजातीय संस्कृति का अभिन्न अंग है। इस बार राजनांदगांव जिले की टोली लोक संस्कृति की महक लिए हुए 28 जनवरी से 30 जनवरी 2023 तक आयोजित होने वाले वाले तीन दिवसीय छत्तीसगढ़ युवा महोत्सव में अपनी प्रस्तुति देंगे। स्वामी विवेकानंद की स्मृति में राजधानी रायपुर में आयोजित होने वाले छत्तीसगढ़ युवा महोत्सव में सरहुल लोक नृत्य दल के कलाकार अपनी प्रस्तुति देने वाले हंै। सरहुल टीम की सभी नर्तक कुशल गृहिणी हैं। संस्कृति व परम्परा को संरक्षित करने का जज्बा व हौसला दिल में लिए 40 वर्ष एवं अधिकतम 62 वर्ष के नर्तक इस नृत्य में शामिल हो रहे हंै। राज्य स्तर पर सरहुल नृत्य का प्रतिनिधित्व करने का आत्मविश्वास लेकर भाग लेने के लिए वे उत्साहित हैं। अधिकांश महिलाएं घरेलू हैं। ज्यादातर महिलाओं के पति नक्सल प्रभावित क्षेत्र में सेवाएं दे रहे हैं तथा उनमें से कुछ महिलाएं शहीद परिवार से भी हैं। शासन की इस पहल से उन्हें यह अवसर मिला है। खेल एवं युवा कल्याण विभाग द्वारा आयोजित युवा महोत्सव में शिरकत कर उन्हें अपनी कला और संस्कृति को प्रदर्शित करने का अवसर मिलेगा।
सरहुल लोक नृत्य छत्तीसगढ़ राज्य में आदिवासी बहुल क्षेत्र सरगुजा, रायगढ़, जशपुर जिले में बसने वाली उरांव, मुण्डा जनजाति द्वारा की जाती है। प्रकृति की अराधना के त्यौहार के रूप में साल वृक्ष की पूजा के साथ यह पर्व मनाया जाता है और इस दौरान मोहक लोक नृत्य सरहुल किया जाता है। उरांव जनजाति के लोग चैत्रमास की पूर्णिमा पर साल वृक्ष की पूजा और नये वर्ष की शुरूआत करते हैं। तब पेड़ों की शाखाओं पर नये फूल खिलते हैं। गीतों के बोल, लय, ताल एवं राग में वादन के साथ एवं गायन के साथ सामूहिक नृत्य करते हैं। इस लोक नृत्य-गीत में सखियों के बीच का वार्तालाप है। जिसमें अपने आस-पास प्रकृति के सुंदर दृश्य को देखकर वे आपस में बातें करती हैं। तो कहीं एक-दूसरे को सलाह, मनुहार, खुशियों की अभिव्यक्ति दिखाई देती है। उरांव बोली एवं कहीं-कहीं सादरी बोली का पुट लिए हुए इन गीतों में माधुर्य है।
तेतर तरे बगुला बैसाय
हायरे दया देख-देख के जीवा लालचाए-
चलेर भलेर..
इन पंक्तियों में एक सखी दूसरे सखी से कहती है कि इमली के पेड़ के नीचे बगुला बैठा हुआ है। जिसकी सुंदरता को देख-देखकर जी ललचा रहा है। गीत के मध्य में चलेर भलेर.. की तुकबंदी है।
केकर मुझे हरदी लगल गमछा, केमर मुड़े गेंदा शोभय रे
राजा केर मुड़े हरदी लगल गमछा, रानी केर मुड़े गेंदा शोभय रे
हो हाइल रे..
प्रश्न करते हुए सखियां एक दूसरे से पूछती है कि – किसके सर पर हल्दी लगा हुआ गमछा है और किसके सिर पर गेंदा की शोभा है। दूसरी सखी कहती है- राजा के सिर हल्दी लगा हुआ गमछा है और रानी के सिर पर गेंदा की शोभा है।
कोमडख़ा पुईदा झोपे-झोपा पुइँदा, पेला जिया टंगरकी रई
तोक्ख एरय पेल्लो मोक्ख एरय पेल्लो, एका नापेवापे एम्बा लागी
सलाई रे सोना सप्लाई रे..
सखी कहती है कि कोईनार के फूल गूच्छे में खिले हुए हैं, जिसे देखकर बहुत अच्छा लग रहा है। इसकी सब्जी बनाने का मन कर रहा है और दिल इसमें लगा हुआ है। दूसरी सखी कहती है – कि इसे तोड़कर देखो लड़की, खा कर देखो कितना स्वाद, कितना मीठा लगता है।
हवाई बरा लागी हवाई बरा लागी हवाई जहाज बरा लागी
लोहा का कराकटा रबड़ का चक्का रे, उड़ते उड़ते हवाई चलै रे
भलेर-भलेर भलेर-हायरे..
जब पहली बार हवाई जहाज देखा तो अपने भावनाओं की अभिव्यक्ति करते हुए कहते हैं कि हवाई जहाज आ रहा है। उसमें लोहे की मशीन है और रबड़ के चक्के हैं। हवाई जहाज उड़ते-उड़ते चल रहा है।
पीपीयो पीयो चरई डारी म बहसल पीयो
पीयो रे डारी के मति भांगबेरे
सोने लगल डाइर पीयो, रूपे लगल डाहर रेद्व पीयो रे डारी के मति भागबे
सखी कहती है – पीपीयो चिडिय़ां डाली पर बैठी है। वह चिडिय़ां से कहती है – डाली को मत काटना क्योंकि यह सोने और रूप की डाल है। इसे मत काटना।
है रे कींदा कालोत है रे कींदा कालोत, रेगैनी परेता कींदा कालोत
ओन सोड़ा मण्डीन तीन बटा ननोत, रंगैनी परेता कींदा कालोत रे
चला लौर हायरे..
सखी कहती है कि – चटाई बनाने के लिए छिन्द के पत्ते काटने रेगैनी पहाड़ चलते हैं, एक पतरी भात को तीन भाग करके खा लेंगे, लेकिन पहाड़ चलते ही हैं।
खददी -दिरी-दिरी घटी कोए पेल्लो जिला काना बेसे अम्मो अम्मो ओनका लगी
कंको विन्डोंन हेबेड़ कोय पेल्लो जिया काना बेसे अम्मो ओनका लगी
लड़की पहाड़ पर लकड़ी लेने गयी है। आते समय कहती है कि बहुत थक गई हूं, प्यास से ऐसा लग रहा है कि जैसे प्राण निकल जाएंगे। ऐसा लग रहा है कि मैं यह लकड़ी का गट्ठर यही फेंक दूं।
कीचरीन मईया कुराय नासगो छैनेर लट्टी लटेखा लगी रे
पाइरी बारी मईया कुराय नासगो, छेनेर लट्टी लटेखा लगीछेनेर लट्टी लटेखा लगी
ननंद अपनी भाभी को समझाते हुए कहती है कि – साड़ी को ऊपर पहनो भाभी, छिनेर घास आपके कपड़ों में चिपक जाएंगी। सुबह और शाम जब भी आप बाहर जाएं, तो साड़ी ऊपर पहने, यह घास आपके कपड़ों में लग जाएंगी।
हायरे छोटा नागपुर है रे हीरा बरवै, नगापुरे झींगोर-झींगोर रे
टाटा नू पन्ना लोहरदगा बाकसाइट, नगापुरे झींगोर-झींगोर रे
रसिका भले रे शोमय से भले रे शोभय भले रे शोभय
उस उस उस..
छोटा नागपुर और बरवै स्थान हीरे की तरह है। इसलिए जगमगा रहा है। यहां लोहा, पन्ना और बाक्साईट की खदान है।
सरहुल लोक नृत्य दल में श्रीमती उषा चटर्जी, श्रीमती प्रभा सरिता लकड़ा, अंजना मिंज, बलम दीना, अंसूता बाड़ा, पुष्पा एक्का, बेरथा तिग्गा, कुमुदनी लकड़ा, गंगोत्री केरकेट्टा, नीलिमा टोप्पो, अनिता खलखो, अनसरिया मिंज, टेलेन्द्र मिंज, असुनकांता कुजुर, ओसकरवी बाड़ा, अंजली टोप्पो, विपिन किशोर लकड़ा, गुप्तेश्वरी रावटे, दीपा बाबला, उमेश दास वैष्णव शामिल है। श्रीमती उषा चटर्जी ने कहा कि शासन द्वारा हमें लोक संस्कृति को उजागर करने का एक अच्छा अवसर मिला है। हम सभी के लिए यह गर्व की बात है कि हम राज्य स्तरीय कार्यक्रम में प्रस्तुति देने जा रहे है। जिला प्रशासन के सहयोग से हम सभी इस राज्य स्तरीय कार्यक्रम में शामिल होने जा रहे है। श्रीमती प्रभा सरिता लकड़ा ने कहा कि छत्तीसगढ़ की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए शासन द्वारा बेहतरीन पहल की गई है। जनजाति संस्कृति को प्रदर्शित करते हुए हम सरहुल नृत्य की प्रस्तुति देंगे। राज्य स्तरीय इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए खुशी की अनुभूति हो रही है।