(चंद्रभूषण वर्मा)
रायपुर। पिछले कुछ दिनों से देखा जा रहा है कि छत्तीसगढ़ के चाणक्य मुख्यमंत्री भूपेश बघेल एवं चंद्रगुप्त स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के बीच शीत युद्ध जैसा माहौल देखने को मिल रहा है। यह बात सभी को ज्ञात है कि छत्तीसगढ़ में सत्ता में वापस आने के लिए कांग्रेस ने इन्ही दो नेताओं के कुशल नेतृत्व में कड़ी मेहनत की और सफलता भी पाई। भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव की जोड़ी को चाणक्य और चंद्रगुप्त की जोड़ी का नाम हमने दिया है। लेकिन अब जो देखने को मिल रहा है वह यह है कि इन दोनो नेताओं के बीच वैचारिक मतभेद कहीं ना कहीं उभर कर सामने आ ही जाते है। ऐसा कई बार हुआ है जब मीडिया के सामने स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने अप्रत्यक्ष रूप से राज्य सरकार के कुछ निर्णयों का विरोध कर जाते है। हांलाकि अभी तक ऐसा नहीं हुआ है ये दोनों नेता आमने-सामने आ गये हो, लेकिन इन दोनों नेताओं के हाव-भाव तो कुछ यही बयां करते है।
टीएस बाबा और भूपेश की जुगलबंदी
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव वर्ष 2018 में कांग्रेस की शानदार जीत को टीएस सिंहदेव और भूपेश बघेल की जुगलबंदी का परिणाम माना गया है। दोनों की जोड़ी को चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य की उपमा से भी नवाजा गया। हांलाकि मुख्यमंत्री की दौड़ में टीएस बाबा और भूपेश बघेल के अलावा चरणदास महंत और ताम्रध्वज साहू भी शामिल थे। इतिहास के अनुसार नंद वंश के पतन में धुरंधर राजनीतिज्ञ और अर्थशास्त्री चाणक्य की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण रही है पर उन्होंने अपने कुशल योद्धा चंद्रगुप्त को सम्राट बनाया। टीएस बाबा और भूपेश बघेल की जोड़ी ने चाणक्य और चंद्रगुप्त के रूप जौहर दिखाकर छत्तीसगढ़ विधानसभा 2018 में अप्रत्याशित जीत हासिल की है।
टीएस की नीति और बघेल की ताकत
चाणक्य ने अपने जीवन दर्शन में राजनीति के लिए भारतीय परंपरा के चार वर्ण ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र और चार आश्रम ब्रम्हाचर्य, गृहस्थ, वामपस्थ और सन्यास को अनिवार्य बताया है। चाणक्य पक्के देशभक्त और सन्यांसी थे। नंद वंश का पतन, मौर्य साम्राज्य की स्थापना और सुशासन के लिए चाणक्य का नाम लिया जाता है। महात्मा गांधी को चाणक्य का यदि भारतीय राजनीति में नवीन संस्करण कहे तो अनुचित नहीं होगा। देश की आजादी के बाद देश में कांग्रेस का राज महात्मा गांधी का आशीर्वाद था। यह प्रसंग चाणक्य के मौर्यवंश की स्थापना जैसे लगता है। विष्णु पुराण और भागवत में जैन धर्म, बुद्ध और कलयुग के राजाओं का वर्णन मिलता है, जिसमें मौर्यवंश और साम्राट अशोक का उल्लेख किया गया है और कलयुग के राजाओं के शासनकाल को 150-200 वर्ष का बताया गया है। राजतंत्र हो या लोकतंत्र जनता का हित सर्वोपरि है और जिसने जनता की उपेक्षा की उसका पतन जरूर हुआ है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की ऐतिहासिक जीत में टीएस बाबा और भूपेश बघेल को राष्ट्रीय राजनीति में एक नई पहचान दी है। टीएस बाबा सामाजिक और राजनीतिक विषय पर अपने दृष्टिकोण से पार्टी और जनता को आकर्षित करते हैं। रमन सरकार के कुशासन को उन्होंने बड़ी कुशलता से उजागर किया औ कांग्रेस की स्वस्थ्य छवि को जनता तक पहुंचाने में कामयाब रहे इसलिए छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की जीत हुई। पार्टी हाईकमान ने टीएस बाबा को मुख्यमंत्री के जगह सुपर सीएम बनाया। टीएस बाबा एक सुलझे हुए राजनीतिज्ञ है। अंबिकापुर पालिका परिषद के 10 वर्षों तक अध्यक्ष रहे है। सार्वजनिक जीवन में उनका सौम्य ओर सरल व्यक्तित्व और उदार स्वभाव लोगों को प्रभावित करता है। टीएस बाबा की आर्थिक और समाजिक नीतियों का प्रदेश में किन्यान्वयन की जवाबदारी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की है। केन्द्र में मोदी सरकार को घेरने के लिए गठबंध की रणनीति पर तैयारी जारी है।
कहीं मध्यप्रदेश और राजस्थान जैसे हालात यहां भी तो नहीं…?
कभी-कभी ऐसा लगता है कि कहीं मध्यप्रदेश और राजस्थान जैसे हालात छत्तीसगढ़ में भी ना बन जाये। ऐसा कई दौर देखने को मिला जब टीएस सिंहदेव मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के कुछ योजनाओं का अप्रत्यक्ष रूप से विरोध कर ही देते थे। एक बार ऐसी नौबत आ गई कि टीएस सिंहदेव के बयान के बाद राज्य सरकार को दो मंत्रियों रविन्द्र चौबे और मोहम्मद अकबर को केबिनेट की ओर से मीडिया को वक्तव्य देने के लिए अधिकृत करना पड़ा। क्या इन्ही सब हालातों को देखकर ऐसा नहीं लगता कि भूपेश और टीएस सिंहदेव रूपी चाणक्य और चंद्रगुप्त के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। वहीं कुछ राजनीतिक जानकारों का कहना है कि भविष्य में ऐसे ही हालात रहे तो यहां भी मध्यप्रदेश और राजस्थान जैसे परिदृश्य जल्द देखने को मिल सकते हैं…?