पौराणिक काल से ही गुरु ज्ञान के प्रसार के साथ-साथ समाज के विकास का बीड़ा उठाते रहे हैं। गुरु शब्द दो अक्षरों से मिलकर बना है- ‘गु’ का अर्थ होता है अंधकार (अज्ञान) एवं ‘रु’ का अर्थ होता है प्रकाश (ज्ञान)। गुरु हमें अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाते हैं। ऐसे ही एक गुरु मां भगवती के उपासक एवं त्रिकालदर्शी चाउर वाले बाबा श्रीश्री नरेन्द्र नयन शास्त्री जी है जो अपने शिष्यों को अंधकार रुपी अज्ञान से ज्ञान रुपी प्रकाश की ओर ले जाने का सिलसिला गतिमान है। वे अपने शिष्यों के हर प्रकार के दुखों मुसीबतों को दूर करते हुए और समस्याओं का समाधान करते हुए उनके जीवन के प्रति समस्त शंकाओं को दूर करते है। वास्तव में गुरु की महिमा का पूरा वर्णन कोई नहीं कर सकता। गुरु की महिमा तो भगवान् से भी कहीं अधिक है-
गुरुब्रह्मा गुरुविर्ष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर: ।
गुरु: साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नम:।
शास्त्रों में गुरु का महत्त्व बहुत ऊँचा है। गुरु की कृपा के बिना भगवान् की प्राप्ति असंभव है। गुरु के मन में सदैव ही यह विचार होता है कि उसका शिष्य सर्वश्रेष्ठ हो और उसके गुणों की सर्वसमाज में पूजा हो। आज के आधुनिक युग में भी गुरु की महत्ता में जरा भी कमी नहीं आयी है। एक बेहतर भविष्य के निर्माण हेतु आज भी गुरु का विशेष योगदान आवश्यक होता है।