Home » भगवान श्री कृष्ण की बात मानने को क्यों तैयार नहीं हो रही थीं गोपियां?
एक्सक्लूसीव देश

भगवान श्री कृष्ण की बात मानने को क्यों तैयार नहीं हो रही थीं गोपियां?

य श्रीकृष्णाय वयंनुम:॥ 

प्रभासाक्षी के श्रद्धेय पाठकों ! भागवत-कथा, स्वर्ग के अमृत से भी अधिक श्रेयस्कर है। 

भागवत-कथा श्रवण करने वाले जन-मानस में भगवान श्री कृष्ण झाड़ू लगाते हैं। यह कथा “पुनाति भुवन त्रयम” तीनों लोकों को पवित्र कर देती है। तो आइए ! इस कथामृत सरोवर में अवगाहन करें और जन्म-मृत्यु के चक्कर से मुक्ति पाकर अपने इस मानव जीवन को सफल बनाएँ। 

मित्रों ! 

पूर्व प्रसंग में हम सबने भगवान के विरह में गोपियों के द्वारा गाया गया गोपी गीत का श्रवण किया। 

आइए ! उसी प्रसंग में आगे चलते हैं—-

गोपियाँ कहती हैं, स्वर्ग का अमृत थोड़ा-थोड़ा देवताओं को पिलाया जाता है कहीं अमृत का घड़ा खाली न हो जाए। किन्तु हरि कथा मे कंजूसी नहीं है, चाहे जितना पियो पिलाओ— हरि अनंत हरि कथा अनंता इसमें कृपणता इसलिए नहीं है क्योंकि यह अनंत है। कभी समाप्त होने वाला अमृत नहीं है। हरि; सर्वत्र पीयते संत महात्माओं ने तथा महर्षि वेदव्यासजी ने शास्त्रों के पात्र में खूब चकाचक भर दिया है। कभी खत्म नहीं होगा जीवन भर पीते रहो। गोपियाँ कहती हैं– हे प्रभों कथा दान से बड़ा कोई दान नहीं होता। गोपियाँ कहती है— कि हे प्रभों ! आपके दर्शन में पलक भी गिर जाए तो ब्रह्मा जी पर बड़ा क्रोध आता है। मूर्ख ब्रह्मा ने ये पलकें क्यों बना दीं। गोविंद के दर्शन में बाधा डालती हैं। सोचो पलक गिरने की स्थिति जब असहनीय हो जाती हैं तो ये घंटे कैसे गुज़रे होंगे। आपके लिए पति, पुत्र, समस्त परिजनों का परित्याग करके हम आईं हैं और आप हमें अधूरा संगीत सुनाकर भाग गए। इस अंधेरी रात में आप भागेंगे तो कांटे आपके पैरों में चुभेंगे और पीड़ा हमारी छाती में होगी। अरे! जिन चरणों को हम अपने सिने पर रखने में भी डरती हैं कि कहीं हमारा कठोर वक्ष आपके चरणों में चुभे नहीं ऐसे सुकुमार चरणों से आप इस कंटीले जंगल में घूमे यह विचारकर ही हमारा हृदय व्यथित हो जाता है। 

तव कथामृतं तप्तजीवनं कविभिरीडितं कल्मषापहम्

श्रवणमंगलं श्रीमदादतं भुवि गृणन्ति ते भुरिदा जना: ॥ 

यत्ते सुजात चरणाम्बुरूहम स्तनेषु भीताशनै: प्रियदधिमहि कर्कशेषु        

तेनाटवी मटसि तद् व्यथते न किंस्वित कूर्पादिभिर्भमतिधीर्भवदायुषां न: ।।

इति गोप्य: प्रगायंत्य: प्रलपंत्यश्च चित्रधा:

रूरुदु; सुस्वरम राजन कृष्ण दर्शन लालसा॥ 

शुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित! इतना कहकर गोपियाँ एक स्वर में विलाप करने लगी। हे गोविंद, हे माधव कहकर रूरुदु; सुस्वरम राजन कृष्ण दर्शन लालसा कृष्ण दर्शन की लालसा में विरहातुर व्रजअंगनाएं विकल होकर विलाप करने लगीं।

जय राधा माधव जय कुंज बिहारी

जय राधा माधव जय कुंज बिहारी

जय गोपी जन वल्लभ

जय गोपी जन वल्लभ

जय गिरिधर धारी 

जय राधा माधव जय कुंज बिहारी

जय राधा माधव जय कुंज बिहारी

यशोदा नंदन ब्रज जन रंजन

जमुना तीर बन चारी

अब श्याम सुंदर अपने को रोक नहीं सके।

तासामाविर भूच्छौरि स्मयमानमुखांबुजम । 

पीताम्बरधर:स्त्रग्वी  साक्षान्मन्मथ मन्मथ: ॥ 

गोपियों की इस विकलता को देखकर प्रभु अपने को रोक नहीं सके। तुरंत गोपियों के बीच प्रकट हो गए। 

बोलिए रास विहारी भगवान की जय। 

कैसे प्रकट हुए तो साक्षात मन्मथ-मन्मथ इतने सुंदर कि आज कामदेव के मन को मथ देने वाला भगवान का सौन्दर्य है। मदन के मन को भी मोह लेने वाले मदन मोहन प्रकट हो गए। पीताम्बर धर; क्यों कहा पीताम्बर भी कह सकते थे। लेकिन पीताम्बर धर; इसलिए कहा, क्योकि भगवान पीताम्बर हाथ में लेकर विरह वियोग से अश्रुपात कर रही गोपियों के आँसू पोछने के लिए दौड़े। जब गोपियों ने प्रभु के उस दिव्य सौंदर्य को देखा तो मानो मरे हुए शरीर में प्राणों का संचार हो गया हो। गोपियों ने चारो तरफ से गोविंद को घेर लिया, गोपियों का प्रेम बरस पड़ा। एक गोपी टेढ़ी नजर से भगवान को देख रही थी बहुत कुछ कहना चाह रही थी किन्तु कह नहीं पाती। सोचती है, कुछ कहूँ और अच्छा न लगे तो ये फिर भाग जाएंगे। एक गोपी को विश्वास ही नहीं हो रहा है कि ये श्री कृष्ण हैं। उसको अभी भी सपना ही लग रहा है। उसने प्रभु को अपनी आँखों में बसाकर पलको का कपाट बंद कर लिया ताकि गोविंद कहीं भाग न जाएँ। एक गोपी ने अपने हृदय रूपी कमरे में कैद कर लिया। बड़े-बड़े संत महात्माओं को जो आनंद प्राप्त होता है वह अद्भुत आनंद उस गोपी को नेत्र बंद करके मिला। अंत में गोपियों ने प्रभु को घेरकर पूछा- प्रभो ! संसार में तीन प्रकार के लोग देखे जाते हैं। एक वे हैं जो प्रेम के बदले में प्रेम करते हैं। दूसरे वे हैं जो हम प्रेम कर रहे हैं तुम करो या मत करो। और तीसरे वे हैं जो किसी से प्रेम करना जानते ही नहीं हैं। भगवान कहते हैं- देवियों ! सुनो जो प्रेम के बदले में प्रेम करे वो प्रेमी नहीं बल्कि उसे व्यवहार कहते हैं। हम प्रेम करते हैं तुम करो या न करो ऐसे प्रेमी केवल माता-पिता हो सकते हैं और जो किसी से प्रेम नहीं करते वो चार प्रकार के होते हैं। 

1) आत्माराम 2) आप्तकम 3) अकृतज्ञ 4) गुरु द्रोही। 

आत्माराम वह है जो अपने शरीर से ही प्रेम नहीं करता तो दूसरों से क्या करेगा? 

आप्तकाम वह है जिसकी सारी इच्छाए पूरी हो गईं इसलिए वह किसी से प्रेम करता ही नहीं। उसकी कोई इच्छा ही नहीं। 

अकृतज्ञ वह है जो कृतघ्न हो वह स्वार्थी होता है। स्वार्थ पूरा होगा तो प्रेम करेगा। 

गुरु द्रोही वह है जो प्रेम करने वाले को ही लूट लेता है अर्थात अपने प्रेमी को ही लूट ले। 

यह सुनकर एक गोपी बोली- ये कृष्ण चौथे नंबर में ही दिख रहे हैं। कृष्ण ने कहा- तुम मुझे गुरुद्रोही समझ रही हो? गोपियों ने कहा- गुरुद्रोही नहीं तो और कौन हो? वंशी बजा के हम सबको बुलाया और रोते हुए छोडकर भाग गए। गुरुद्रोही नहीं तो और क्या है? प्रेमियों के साथ ऐसा व्यवहार करते हो? भगवान ने हाथ जोड़कर कहा- ऐसा नहीं है। सच तो यह है कि तुम्हारे विरह में मैं भी कम नहीं तड़पा। जब तुम विकल होकर विलाप करती थी तो मेरा दिल भी विकल हो जाता था। गोपियाँ बोलीं- एक नंबर के झूठे हो। हम तुम्हें बचपन से जानती हैं। यदि तुम विकल होते तो हम सबको छोडकर भागते ही क्यों? भगवान बोले- सुनो देवियों ! विना वियोग के संयोग पुष्ट नहीं होता। शीतल छाया का आनंद तभी महसूस होता है जब वह धूप में तपा हो। उसी प्रकार जब तक प्रियतम से मिलने की विरह रूपी अग्नि हृदय में न जली हो तब तक मिलन का क्या सुख? रात्रि का अंधेरा न आए तो दिन के प्रकाश का क्या मतलब? लोहे की जंजीर से निकल भागना तो आसान है किन्तु पारिवारिक आसक्तियों की जंजीर को तोड़ना बड़ा कठिन है। तुमने तो मेरे लिए लोक-लाज की तिलांजलि दे दी। उन बेड़ियों को भी तोड़ दिया। इसलिए तुम्हारे इस महात्याग के बदले, मैं क्या दूँ ? तुम्ही अपने ऋण से उऋण करो। गोपियाँ माधव के ये मधुर वचन सुनकर मुग्ध हो गईं। अब भगवान ने पुन; उनके साथ विक्रीड़न किया। जितनी गोपियाँ उतने कृष्ण प्रकट हो गए। गोपियाँ घर का काम छोड़कर आईं थी भगवान गोपी बनकर उनके घर के सभी काम संभालने लगे। प्रत्येक ग्वाला अपनी पत्नी को घर में ही देख रहा है। भगवान ने गोपियों के संग अद्भुत रास लीला प्रारम्भ किया। प्रत्येक गोपी को लग रहा है कि गोविंद मेरे संग ही नाच रहे हैं।

शेष अगले प्रसंग में —-    

श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव ———-

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।

Cricket Score

Advertisement

Live COVID-19 statistics for
India
Confirmed
0
Recovered
0
Deaths
0
Last updated: 21 minutes ago

Advertisement

error: Content is protected !!