वर्तमान समय में स्कूल में प्रवेश करने के एक-दो साल के बाद ही बच्चे के चेहरे पर तनाव नजर आने लगता है। कई बार बच्चा स्कूल न जाने का बहाना ढूंढ़ने लगता है। कभी वह बीमारी का बहाना बनाता है या कभी वह आलस जताता है। माता-पिता बच्चे की इन बातों को नजरअंदाज करते हुए उन्हें जोर-जबरदस्ती से स्कूल भेजते हैं। वास्तविकता यह है कि यदि आपको अपने बच्चे में ऐसा कुछ दिखाई दे तो समझिए कि बच्चे का मन पढ़ाई में नहीं है। इस बात की गवाही आपको बच्चे की हैंडराइटिंग से लग सकती है। अगर बच्चा पढ़ाई पर ध्यान दे रहा है तो वह बहुत मन लगाकर लिखेगा भी। किसी बच्चे की हैंडराइटिंग बहुत सुंदर होती है, तो किसी की लिखावट समझ तक नहीं आती है। सुंदर हैंडराइटिंग वैसे तो सभी चाहते हैं लेकिन बेसिक गलतियों की वजह से जीवन भर हम राइटिंग सुधारने का प्रयास करने पर भी लिखावट में सुधार नहीं कर पाते। इसके लिए पेरेंट्स को बच्चों पर शुरू से ही ध्यान देने की जरूरत होती है। आज हम अपने खास खबर डॉट कॉम के पाठकों को कुछ ऐसी बातें बताने जा रहे हैं जिनकी मदद से बच्चों की खराब हैंडराइटिंग में सुधार लाया जा सकता है।बच्चों में डाले लिखने की आदत हैंडराइटिंग को सुंदर और साफ बनाने के लिए बच्चों को शुरुआत से ही लिखने का अभ्यास करवाएं। जब बच्चा प्ले स्कूल में जाना शुरू करें, तभी से उसमें लिखने की आदत डालना जरूरी है। बच्चों से रोजाना एक पेज जरूर लिखवाएं। ऐसा करने से धीरे-धीरे उसकी लिखावट में सुधार होता जाएगा। ग्रिप को करें चेक खराब लिखावट का प्रमुख कारण अक्सर ग्रिप होती है। अगर बच्चा पेन या पेंसिल को अंगूठे, मध्यमा अंगुली और तर्जनी अंगुली से पकड़ रहा है तो ठीक है। कई बार बच्चे पेन को बहुत टाइट पकड़ लेते हैं जिससे हाथ थक जाता है और राइटिंग खराब होने लगती है। ग्रिप को ज्यादा टाइट रखने की जरूरत नहीं है। कागज पर बहुत ज्यादा प्रेशर की वजह से भी लिखावट खराब होती है। इस ओर ध्यान दें कि लिखते समय बच्चा पेन या पेंसिल पर कितना दबाव बना रहा है।
अक्षरों को समझाएं शुरूआत में बच्चों को अक्षरों को समझाने के लिए बहुत सावधानी से पढ़ाना होता है। इसी वजह से पेरेंट्स को अक्षरों के बारे में बच्चों को सही से समझाना चाहिए। बच्चों को पहले किसी भी शब्द का एक-एक अक्षर लिखना सिखाएं और फिर पूरे शब्द को एक साथ लिखना। इसमें थोड़ा समय लग सकता है। इस दौरान बच्चे को बताएं कि दो अक्षरों और दो शब्दों के बीच कितनी जगह छोड़नी चाहिए। बस जल्दबाजी बिल्कुल भी न करें। स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए पेरेंट्स व्हाइट बोर्ड और मार्कर का इस्तेमाल कर सकते हैं। पेरेंट्स, बोर्ड पर लिखकर बच्चे की रोजाना सही तरीके से लिखने की प्रैक्टिस करवा सकते हैं।
होमवर्क का दबाव ना डालें स्कूल से बच्चों को होमवर्क के लिए 5 से 6 शब्द या अक्षर लिखने के लिए दिए जाते हैं। जिन्हें लिखने में बच्चे शुरू में तो काफी ध्यान देते हैं, लेकिन आधा होमवर्क खत्म होने से पहले ही वे इस काम से बोर हो जाते हैं और जल्दी से इसे निपटाने के चक्कर राइटिंग खराब कर जाते हैं। उनकी इस आदत को बदलने के लिए और लिखावट सुधारने के लिए उनका होमवर्क खेल-खेल में करवाएं, जैसे- कोई शब्द लिखना है, तो उसे उस शब्द से जुड़ी कोई तस्वीर दिखाएं या किसी गेम के जरिए लिखने के लिए कहें।स्टडी टेबल की ऊंचाई जांच लेंबच्चों की राइटिंग में सुधार करना है, तो एक बार उनके स्टडी टेबल पर भी ध्यान दें। देखें कि कहीं वो बच्चों के हिसाब से अधिक ऊंची या नीची तो नहीं है। याद रहे बच्चों को उतनी ऊंचाई का स्टडी टेबल ही देना चाहिए, जिसकी कुर्सी पर बैठने के बाद टेबल पर कोहनी रखकर आसानी से लिखा जा सके। इससे उनकी राइटिंग पर बहुत फर्क नजर आएगा और बच्चों को कुर्सी पर बैठने के बाद शरीर में होने वाला दर्द भी नहीं होगा।
परेशानी को समझें बच्चे की लिखावट में सुधार के लिए तमाम प्रयास के बाद भी कोई फर्क नजर नहीं आ रहा, तो पेरेंट्स को इसके पीछे का कारण जानने की कोशिश करनी चाहिए। बच्चे की खराब राइटिंग के पीछे कई कारण हो सकते हैं जैसे बच्चे का पोस्चर, पेंसिल को सही से न पकड़ना, कोई स्वास्थ्य स्थिति जैसे अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसआॅर्डर है यह व्यवहार संबंधी विकार है, जिसमें ध्यान की कमी और अत्यधिक सक्रियता होती है, जिसके कारण बच्चे में गुस्सा व जिद जैसी समस्या भी दिखती है।