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कृषि जैव विविधता में छत्तीसगढ़ : एक महत्वपूर्ण प्रदेश

दुनिया के जैव विविधता के मुद्दों को बढ़ावा देने और जैव विविधता के संरक्षण और उचित उपयोग के लिए बनाए जा रहे सतत विकास लक्ष्यों को अपनाने के लिए हर साल 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस मनाया जाता है इस क्रम में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर छत्तीसगढ़ अपने माननीय कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल के नेतृत्व में कृषि-जैव विविधता संरक्षण और जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए इसके सतत उपयोग के क्षेत्र में काम कर रहा है। विश्वविद्यालय में अनेक अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय परियोजनाएँ संचालित की जा रही हैं। पौधा किस्म और किसान अधिकार संरक्षण प्राधिकरण, भारत सरकार, नई दिल्ली किसानों की विभिन्न फसलों की किस्मों को सुरक्षा प्रदान करती है इसी श्रृखला में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर ने कुल 1830 पौधा किस्मो के पंजीकरण के आवेदन जमा किये हैं जिनमे से 526 कृषक प्रजातियों को पंजीकरण प्रमाणपत्र जारी किया जा चुका है. पौधा किस्म और किसान अधिकार संरक्षण प्राधिकरण विशेष गुणों वाली दुर्लभ भूमि प्रजातियों का संरक्षण करने वाले प्रमुख किसानों को पुरस्कारों से सम्मानित किया करती है। कृषक प्रजातियाँ युगों से कृषको द्वारा उपयोग की जा रही है इसलिए यह किस्मे विशेष गुणों से ओत-प्रोत है तथा इनमे जलवायु परिवर्तन से जूझने के गुण मौजूद हैं. ऐसी ही किस्मो के संरक्षण करने के लिए पौधा किस्म और किसान अधिकार संरक्षण प्राधिकरण, भारत सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ के कुल 17 किसानों को पुरस्कार दिये गये हैं, जिसमें 02 कृषक सामुदायों को 10-10 लाख रुपए का पुरस्कार, 06 कृषकों को 1.5-1.5 लाख रूपये, 09 किसानों को 1 लाख रूपये के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने राज्य में कुल 09 जैव विविधता हॉटस्पॉट की पहचान की गई है जहाँ असीमित जैव विविधता की विवेचना की गई है तथा छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र को देश के मेगा जैव विविधता हॉटस्पॉट बनाने के लिए राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (एनबीए), चेन्नई को प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया है। विश्वविद्यालय की संयुक्त राष्ट्र वैश्विक पर्यावरण वित्त पोषित परियोजना के माध्यम से किसानों की किस्मों को मुख्यधारा में लाया गया तथा कृषक किस्मो को बौना और शीघ्र पकने वाली किस्म के रूप में, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के सहयोग से विकसित किया गया है। हाल ही में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने जर्मप्लाज्म से विकसित जलवायु स्मार्ट किस्मों, टीसीडीएम-1 (छोटी ऊंचाई और प्रारंभिक दुबराज), विक्रम टीसीआर (छोटी ऊंचाई और अवधि सफ़री -17), टीसीवीएम (छोटी और प्रारंभिक विष्णुभोग), बाउना लुचाई (छोटी और प्रारंभिक) के साथ आए। लुचाई), टीसीएसएम (अधिक उपज देने वाली और मजबूत कद वाली सोनागाथी)। कृषि-जैव विविधता के उत्सव में एक विशेष योगदान संजीवनी चावल है जो राज्य और देश की पहली औषधीय चावल किस्म है जो शरीर की रोग प्रतिरोध क्षमता को बढ़ाने और कैंसर कोशिका की वृद्धि को रोकने में सक्षम साबित हुई है। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय को जर्मप्लाज्म के उपयोग के लिए दो पुरस्कार जीते हैं, पहला डॉ. एस. के. वासल पुरस्कार २०२२ और दूसरा वार्षिक चावल समूह बैठक नई दिल्ली में सर्वश्रेष्ठ केंद्र पुरस्कार २०२३। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर छत्तीसगढ़ इसी तारात्यम में सैदव कृषको का विकास कृषको के साथ करने की अभिलाषा रखता है.

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