रायपुर। साजा से 9 किमी दक्षिण दिशा में चारों ओर बाग-बगीचों से घिरा हुआ सुरही नदी के तट पर स्थित ग्राम देउरगांव। यह गांव आज भी अपनी प्राचीन परंपराओं की गाथा सुना रहा है। यह गांव मां महामाया की छत्रछाया में फलाफूला है। श्रद्धालुओं एवं भक्तों की मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु मां को एक बार पुकारे उनके लिए मां भी हर वक्त अपना हाथ उठा लेती है। देवी मां की गाथा कुछ इस प्रकार से बताई एवं सुनी जाती है।
करीब 18वीं शताब्दी पूर्व मोहगांव के राजा महंत घासीदास के समय में बलोज उत्तर प्रदेश से यहां चौबे जी नांदगांव के मंदिर में पुजारी के रूप में काम करने लगे। इनका लड़का मर्जाद चौबे नांदगांव के रानीसागर के एक घाट में नहाया करते थे जहां पर नहाने के लिए कोई दूसरा हिम्मत नहीं जुटा पाते थे। इसी समय नागपुर के राजा भोसले के दो सिपाही कर लेने यहां आये एवं वे उसी घाट में नहाने लगे, जिस घाट में मर्जाद चौबे नहाया करते थे। इसे देख मर्जाद चौबे अपना आपा खो बैठे और अत्यंत क्रोधित हो उनसे मारपीट कर भगा दिया।
पश्चार इस घटना की शिकायत सिपाहियों द्वारा राजा के पास करने पर इन्हे कर देकर बिदा तो कर दिया गया मगर मर्जाद चौबे को यहां से हटाकर क्षेत्र में स्थित मोहतरा में रहने के लिए कहा गया। चौबे जी को यहां मालगुजारी करते हुए मात्र 40 वर्ष हुए थे। इस ग्राम को रानी ने वृंदावन में दान कर दिया, फिर इसे ग्राम से 4 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम देउरगांव में इसे बसाया गया। यहां इनका कारोबार अच्छा चल ही रहा था कि एक रात्रि स्वप्र आया कि मोहतरा में नीम वृक्ष के नीचे खुदाई करने पर तुम्हें एक दिव्य दीप्तीमान मां महामाया की मूर्ति मिलेगी। जिसे तुम वहां से लाकर अपने ही ग्राम देउरगांव में स्थापित कर लेना। सुबह चौबे जी ने समस्त ग्रामवासियों सहित उसी वृक्ष के नीचे खुदाई करने पर मां महामाया की दिव्य मूर्ति प्राप्त हुई। जिसे गांव में स्थापित करने के लिए कई बैलगाड़ी का उपयोग किया गया। परंतु सबके टूट जाने पर हताश चौबे जी ने पूजा-अर्चना कर अपने कांख में दबाकर गांव ले आये। उसकी खबर सुन राजा मांग करने लगा चौबे जी द्वारा नकारात्मक उत्तर दिये जाने पर उन्हे तरह-तरह से प्रताडि़त किये जाने लगा। जो आदिशक्ति मां महामाया देवी से नहीं देखा गया। परिणामस्वरूप पुन: एक रात्रि स्वप्र आया कि तुम इस राजा को ग्राम मोहगांव में देकर उसी जगह पर और खुदाई करने प्राप्त मंझली बहन व छोटी बहन को उसी ग्राम में स्थापित कर मंझली बहन को अपने ग्राम देउरगांव एवं मोहतरा में विराजमान है। इसके बाद से समस्त ग्रामवासी व चौबे जी अटूट स्नेह व श्रद्धा के साथ पूजा-अर्चना किया करते थे। इसी समय से ग्राम देउरगांव ममतामयी मां महामाया के आशीर्वाद से अपनी उन्नति की ओर बढ़ता गया जिससे सारे लोग आश्चर्यचकित है। चौबे जी को दिव्य शक्तिमान मां महामाया के अलावा इस दुनिया में कोई प्रिय नहीं था। मातेश्वरी मां महामाया के लिए वे हर कुछ करने तत्पर रहते थे। इसी समय की घटना है इनकी पत्नी भगवती देवी चौबे सुबह जब सुरही नदी नहाने के लिए जाती थी तो इन्ही की बेटी जोर-जोर से आवाज लगाकर रोती थी जिससे इनके पिता मर्जाद चौबे को पूजा-अर्चना में बाधा होती थी। इसे देखकर मर्जाद चौबे ने मां महामाया के आजू-बाजू रखे एक तलवार (ऊपर पतला-नीचे मोटा बीच में सोना) से बलि चढ़ा दी। चौबे जी की श्रद्धा सिर्फ यहीं तक ही नहीं, वे मां को हाथ में लिये प्रति रात्रि नदी नहलाने के लिए ले जाया करते थे। इस घटना के बाद इसकी खबर क्षेत्र के हर लोगों तक पहुंच गई।
राजा ने यह खबर सुनते ही मर्जाद चौबे को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। परंतु चौबे जी के बिना मा महामाया को चैन कहा ? तत्पश्चात जगत जननी मां ने अपने दैविक शक्ति से राजा को अपना निर्णय वापस लेने को मजबूर कर दिया। राज्य में हजारों की तादात में बैल, हाथी, घोड़ा आदि बेमौत ही मौत के मुंह में समा गये। परिणामत: राजा ने भयभीत होकर रिखीदास की सलाह से 51 रुपया जुर्माना लेकर कारावास से मुक्त कर दिया। इसी समय से मां महामाया के सामने बलि चढ़ाने का क्रम शुरू हो गया। चौबे की मृत्यु के बाद उनके पुत्र रतन और रंजीत चौबे ने पड़वा (भैंसा) की बलि बंद करवा कर बकरों की बलि चढ़ाना शुरू करवा दिया। जो आज से करीब 40 वर्ष पूर्व तक अनवरत जारी रहा। किंतु आज वहां किसी प्रकार की बलि नहीं दी जाती, सिर्फ चैत्र एवं क्वांर नवरात्रि में भुजा को तलवार से काटकर खुन के बहते तक टीका जरुर लगाते है। जगत जननी आदिशक्ति मां महामाया अत्यंता दयालु और फुरमानुक जल्द से जल्द प्रसन्न होना है। आज भी कोई व्यक्ति मातेश्वरी के दरबार में श्रद्धापूर्वक कुछ मांगे तो अगले नवरात्रि तक पूरा हो जाता हैै।
गांव व दूर-दूर से भी काम करने वाले लोग वर्ष में 2 बार होने वाले नवरात्रि के समय मां के दरबार में अवश्य ही पहुंचते हैं। नवरात्रि विसर्जन के दिन महिलाओं के सिर में जगमगाते हुए ज्योति क्लश कतारबद्ध लेकर सनै:सनै:नदी की ओर बढऩा इस समय खुले वातावरण में गंभीरता, कोई आंधी तूफान हवा पानी, नही बिल्कुल शांत कुछ लोगों का भाव अनियंत्रित होकर (देवता चढऩा) हाथ व जीभ में बाना लेना, बंधे हुए नाचते झूमते ज्योति क्लश के सामने नदी की ओर चलना। आल्हादकारी एवं भंयकर रोमांचित करने वाले दृश्य से रोंगटे खड़े हो जाते है। देवता चढ़े लोगों से पूछने पर बताते है कि मां हमारे सामने पैदल चल रही है, जो स्पष्ट दिखाई दे रहा है। सभी लोगों में अटूट उत्साह और सहयोगात्मक भावना देखते ही बनती है। नदी से वापस आने के बाद वातावरण में शांति का माहौल बनाता है और देखने पर सभी लोगों के चेहरे पर बहुत कुछ खोया हुआ सा प्रतीत होता है।