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दुनिया भर में छाएगा पूर्वांचल के लाजवाब गवरजीत आम का स्वाद, सुगंध से ही खिंचे चले आते हैं लोग

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आम सीजन भले ऑफ हो लेकिन इसका नाम लेते ही मुंह में पानी जरूर आ जाता है. यूं तो दुनिया भर में आम की कई सारी किसमें मशहूर हैं लेकिन पूर्वांचल के चुनिंदा जिलों में पाया जाने वाले गवरजीत आम का स्वाद कुछ ज्यादा ही खास है. अब तो इसको बढ़ावा देनी सरकार ने भी पहल कर दी है. दरअसल, योगी सरकार ने जिन 15 कृषि उत्पादों के जीआई (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) टैगिंग के लिए आवेदन दिया है, उसमें गवरजीत आम भी शामिल है. यूपी के मलिहाबाद (लखनऊ) का दशहरी, पश्चिम उत्तर प्रदेश का चौसा, वाराणसी का लंगड़ा और मुंबई के अलफांसो तो खूब ही प्रसद्धि है लेकि अगर आप गोरखपुर और बस्ती मंडल के किसी शख्स से पूछेंगे कि आमों का राजा कौन है? तो वह गवरजीत का ही नाम लेगा. गवरजीत आम कई मायनों में खास है, पहला इसको कार्बाइड से नहीं पकाया जाता. ठेलों पर भी पत्तों के साथ यह नजर आता है. लाजवाब स्वाद वाला गवरजीत इसलिए अन्य आमों से महंगा भी होता है. साथ ही बात चाहें खुशबू की करें या स्वाद और रंग की, गवरजीत लोगों का दिल जीत लेता है. पूर्वांचल के गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, बस्ती और संतकबीरनगर जिलों के लाखों लोगों को आम के सीजन में इसका इंतजार रहता है. इन्हीं खूबियों के नाते जून 2016 में लखनऊ के लोहिया पार्क में आयोजित प्रदेश स्तरीय आम महोत्सव में इसे प्रथम पुरस्कार मिला था. इजरायल की मदद से योगी सरकार इसे लोकप्रिय (ब्रांड) बनाने का प्रयास कर रही है. हाल के वर्षों में इसकी लोकप्रियता बढ़ी भी है. अब सीजन में अगर कोई बस्ती के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस से आम के 500 पौध खरीदता है तो उसमें 50 गवरजीत के होते हैं, खरीदने वालों में लखनऊ और अंबेडकर नगर आदि जिलों के भी लोग हैं. अन्य खूबियों की बात करें तो यह आम की अर्ली प्रजाति है, इसकी आवक दशहरी के पहले शुरू होती है. जब तक डाल की दशहरी आती है तब तक यह खत्म हो जाता है. मौसम ठीक ठाक रहे तो डाल के गवरजीत की आवक जून के दूसरे हफ्ते में शुरू हो जाती है. योगी सरकार ने गौरजीत समेत 15 उत्पादों के जीआई टैंगिंग के लिए आवेदन किया है. ये उत्पाद हैं- बनारस का लंगड़ा आम, पान पत्ता, बुंदेलखंड का कठिया गेहूं, प्रतापगढ़ के आंवला, बनारस लाल पेड़ा, लाल भरवा मिर्च, पान (पत्ता), तिरंगी बरफी, ठंडई, पश्चिम यूपी का चौसा आम, पूर्वांचल का आदम चीनी चावल, जौनपुर की इमरती, मुजफ्फरनगर का गुड़ और रामनगर का भांटा गोल बैगन। इन सबके जीआई पंजीकरण की प्रक्रिया अंतिम चरण में हैं. जीआई टैग किसी क्षेत्र में पाए जाने वाले कृषि उत्पाद को कानूनी संरक्षण प्रदान करता है. जीआई टैग द्वारा कृषि उत्पादों के अनाधिकृत प्रयोग पर अंकुश लगाया जा सकता है. यह किसी भौगोलिक क्षेत्र में उत्पादित होने वाले कृषि उत्पादों का महत्व बढ़ा देता है. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में जीआई टैग को एक ट्रेडमार्क के रूप में देखा जाता है. इससे निर्यात को बढ़ावा मिलता है, साथ ही स्थानीय आमदनी भी बढ़ती है. विशिष्ट कृषि उत्पादों को पहचान कर उनका भारत के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय बाजार में निर्यात और प्रचार प्रसार करने में आसानी होती है.

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