Wednesday, December 10

रायपुर।सामाजिक व साहित्यिक संस्था “वक्ता मंच”द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर आज 8 मार्च को प्रदेश की महिला साहित्यकारों हेतु गूगल मीट पर ऑनलाइन बहुभाषी कवि सम्मेलन सम्पन्न हुआ।नारी सशक्तिकरण विषय पर आयोजित इस कवि सम्मेलन में हिंदी,उर्दू,छत्तीसगढ़ी भाषाओं में मनभावन प्रस्तुतियां दी गई।वक्ता मंच के सचिव देवेंद्र सिंह चावला ने जानकारी दी है कि इस अवसर पर वक्ता मंच द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय प्रदेशभर की महिला विभूतियों को सम्मानित किए जाने की भी घोषणा की गई।कवि सम्मेलन में किरणलता वैद्य,शोभा शुक्ला,कमल वर्मा,तुलेश्वरी धुरंधर,गौरी अग्रवाल,पूरणेश डडसेना एवं सीमा साहू ने शिरकत की।कार्यक्रम का संचालन शुभम साहू एवं तकनीकी संयोजन दुष्यंत साहू द्वारा किया गया।
कवि सम्मेलन में शुभा शुक्ला “निशा”की प्रस्तुति इस प्रकार रही:-
नारी तू नारायणी है प्रेम भाव संचारिणी है
विषमता से भरी इस सृष्टि की तु अविरल संचालिनी है
तू ही हर युग के जन जन की निर्मात्री है
पुरुषों के अपराध की क्षमादात्री है।
चिकित्सक एवं साहित्यकार डॉ कमल वर्मा ने नारी के मन के आक्रोश को धारदार शब्दो मे व्यक्त किया:-
गगन झनझन आ रहा,पवन सनसना रहा।
हमारे दिल में उठ रहा तूफान,
ऐं दुनियाँ वालो,हो सावधान।
हम हैं दुर्गा हम हैं कमला,
हम हैं सीता, हम हैं मीरा।
हमारें रूप से बनो नअनजान।
ओ दुनियाँ वालो हो सावधान!
समर है खेला लक्ष्मी बन कर,
जोहर करते पदमा बनकर,
आन रख्खी है हमने देखे जान।
दुनियाँ वालों हो सावधान।
हम सृष्टि का सृजन करतें,
सब जीवों का पालन करतें
हमारे बाहों के घेरे हैं आजान।
ओ दुनियाँ वालों हो सावधान।
डॉ गौरी अग्रवाल की इस कविता ने स्त्री की पीड़ा को रेखांकित किया:-
पैदा हुई जब मैं
पुकारा माँ ने लक्ष्मी मुझे,
पढ़ने गई मैं
स्वीकारा माँ ने सरस्वती मुझे,
नौकरी कर जुटाया भोजन
तो मुझे अन्नपूर्णा कहा माँ ने।
ईशु कंसारी ने महिला के महत्व को सहजता के साथ अभिव्यक्त किया:-
नारी से तो सृष्टि होती हैं सृजन
की वो देवी होती हैं ममतामयी
और वात्सल्य से भरी होती हैं
जगजननी माँ और वो ही तो
कल्याण करने वाली होती हैं।।
डॉ तुलेश्वरी धुरंधर की छत्तीसगढ़ी कविता ने माहौल जमा दिया:-
नारी ह बड़ महान होथे जी
गुण के ओ ह खान होथे जी।
नारी ह ——-
बेटी बनके सुघराथे
घर अँगना ला महकाते।
बेटी हमर लक्मी रूप होथे जी।
गुण के ओ खान ,होथे जी।
नारी ह——
पत्नी बन पीरा हरथे
पहिया कस संग मा चलथे।
दाई बन ममता ममता लुटाथे।
बहिनी बन रक्षा सूत्र बांधे जी।
गुण के ओ खान होथे जी।
नारी बड़ ——-
पूरणेश डडसेना की उर्दू प्रधान कविता ने समाज मे स्त्री के महत्व को प्रभावी रूप से रखा:-
अपने ख्वाबों की अधूरी
कहानी लिखती हूं
मैं अपनी ही बीती जिंदगानी
लिखती हूं
नारी हूं उसके अस्मिता की
दास्तान लिखती हूं
अपने हौसलों की उड़ान से
उनका इतिहास बदलती हूं
बुलंदियों को छू जाए ऐसे
अल्फाज लिखती हूं
प्रणय से प्रलय तक
मैं उसका गुणगान लिखती हूं
किरणलता वैद्य ने नारी के विषय मे जारी सदियों पुरानी मान्यताओं पर कड़ा प्रहार किया:-
अबला तेरी यह कहानी,आँचल में दूध आँखों में पानी।
हो चुकी है बहुत पुरानी,आगे और नहीं दोहरानी।
आँचल में है दूध,इस दूध की ताक़त जग ने जानी।
इसके अलावा भी प्रभावपूर्ण प्रस्तुतियां हुई।यह कवि सम्मेलन महिलाओं की पीड़ा,दर्द,उनके ममत्व,उनकी शक्ति व समाज को दिशा देने की उनकी सामर्थ्य के साथ ही उनको कुरूतियो से मुक्त होकर नये इतिहास लिखने की प्रेरणा व संकल्प भाव को प्रस्तुत करने में सफल रहा।

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