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40,000 बार सांप से कटवाने गया यह वैज्ञानिक

भारत की ही तरह ब्राजील में भी हर साल 27,000 लोग सांप के जहर का शिकार बनते हैं. स्नेकबाइट यानी सर्पदंश झेलने वाले देशों में वालों में यह दुनिया में चौथे नंबर पर है. यह आंकड़े तो डरावने हैं ही लेकिन उससे भी ज्यादा चिंताजनक बात है सर्पदंश से जुड़े रिसर्च की कमी. एंटीवेनम यानी जहर की काट ढूंढ कर इस समस्या पर काबू पाने के साथ ही जरूरी है कि वैज्ञानिक तौर परसांपों का व्यवहार समझा जाए. यह पड़ताल की जाए कि कुछ सांप इंसानों को क्यों काटते हैं.

इसी इरादे के साथ खुद को ही सांप से कटवाने का अभूतपूर्व काम किया है ब्राजील के बूतनतन इंस्टिट्यूट में रिसर्चर जोआओ मिगेल आल्वेस-नूनिस ने. उन्होने खुद को दक्षिणी अमेरिका के सबसे जहरीले वाइपर जराराका से 40,000 बार से भी ज्यादा कटवाया. इतना बड़ा जोखिम लेने के बाद निकाले गए नतीजे नेचर जर्नल में वैज्ञानिक रिपोर्ट के तौर पर प्रकाशित हुए हैं.

क्या था प्रयोग

आल्वेस-नूनिस ने साइंस जर्नल से बातचीत में कहा, “ब्राजील में सांपों के व्यवहार पर रिसर्च आमतौर पर नहीं किया जाता है. ज्यादातर शोध उन कारकों की तरफ ध्यान नहीं देते जो सांपों के काटने की वजह बनते हैं. अगर आप मलेरिया का अध्ययन करें तो आप उसकी वजह बनने वाले परजीवियों पर रिसर्च कर सकते हैं लेकिन जब तक उसका वाहक बनने वाले मच्छर की स्टडी ना हो तब तक समस्या का हल नहीं मिल सकता. अभी तक, आम समझ यही है कि जराराका तभी हमला करते हैं जब आप उन्हें छुएं या पैर रख दें. हालांकि हमारे रिसर्च में यह साबित नहीं हुआ.”

आल्वेस-नूनिस ने जर्नल को बताया कि इस रिसर्च का सबसे बेहतर तरीका था कि “इंसान और सांप आमने-सामने हों. इसके लिए सांप को लैब की जमीन पर एक पिंजरे में रखा गया. उसके बाद उन्होने चमड़े पर फोम चढ़े विशेष जूते पहनकर सांप के पास या उसके ऊपर हल्का सा कदम रखा ताकि वह जख्मी ना हो.” यह प्रयोग 116 सांपों पर 30 बार किया गया यानी कुल मिलाकर आल्वेस-नूनिस ने 40,480 बार सांप से कटवाने के लिए कदम बढ़ाया.

क्या कहते हैं नतीजे

इस जोखिम भरे प्रयोग से जुटाई गई जानकारी के मुताबिक, सांप जितना छोटा होगा उसके काटने का चांस उतना ज्यादा है. दूसरी अहम चीज है कि मादा सांप ज्यादा आक्रामक होती हैं और उनके काटने की संभावना ज्यादा रहती है, खासकर दिन के वक्त और उनकी युवावस्था में. यह भी पता चला है कि ज्यादा तापमान पर सांप ज्यादा आक्रामक व्यवहार करते हैं. आल्वेस-नूनिस कहते हैं कि यह सारा डाटा, अस्पतालों में मौजूद रिकॉर्डों से मेल खाता है. साओ पाउलो में, गर्मियों में सर्पदंश की घटनाएं ज्यादा होती हैं और काटने वालों में ज्यादातर छोटे आकार की मादा सांप होती हैं.

साथ ही, यह स्टडी बताती है कि सांप को कहां छुआ गया है, यह भी उसके काटने में भूमिका निभाता है. अगर उसके सिर पर आपका पांव पड़ा तो चांस ज्यादा है कि सांप अपने बचाव में काटे जबकि उसकी पूंछ या शरीर के किसी दूसरे हिस्से को छूने पर आशंका शायद कम हो जाती है. यह सारी जानकारी सर्पदंश के बारे में जानकारी बढ़ाने और ऐसी सुदूर जगहों पर काम की साबित होने की उम्मीद है जहां सांपों के काटने की घटनाएं ज्यादा होती हैं, लेकिन एंटीवेनम तुरंत मुहैया नहीं होती.

भारत का हाल

भारत में सांपों की 300 प्रजातियां मिलती हैं हालांकि इनमें से 60 ही हैं जिन्हें जहरीला या मामूली तौर पर जहरीला कहा जाता है. दुखद यह है कि दुनिया में सर्पदंश की लगभग आधी घटनाएं भारत में होती हैं. जाहिर है कि यह रिसर्च उस लिहाज से काफी काम की है.

इस समस्या को 2017 में ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नेगलेक्टेड ट्रॉपिकल डिसीज यानी एक उपेक्षित बीमारी घोषित कर दिया था. भारत में सांप के जहर की काट के लिए इस्तेमाल होने वाली वैक्सीन केवल चार प्रजातियों के जहर का इलाज करने के लिए मुनासिब है. इसका सीधा मतलब है कि इस समस्या से निपटने के लिए ब्राजील की तरह भारत में भी सांप के काटने और एंटीवेनम के प्रकार के साथ ही, भारत की विविध भौगोलिक परिस्थितियों में रहने वाले सांपों के व्यवहार से जुड़े रिसर्च का आधार व्यापक बनाने की बहुत ज्यादा जरूरत है.

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